बामनो ने शूद्र अति शूद्रो पर अत्याचार कैसे किए?




बहोत सारे लोगों के दिमाग में ये सवाल जरूर आया होगा कि शूद्र अति शूद्र संख्या में ज्यादा होने के बावजूद कोई उनपर अत्याचार कैसे कर सकता है। 


उन्होंने उसके खिलाफ कोई विद्रोह क्यों नहीं किया ? 


आज इसी बात का विश्लेषण हम करेंगे 


सबसे पहले तो हमें ये जान लेना चाहिए की किसी भी समाज या व्यक्ति का नैतिक दृष्टिकोण उतना ही विकसित होता है जितना उसे प्रकृति और विज्ञान के नियम पता होते है 


आज कोई शूद्र नहीं मानेगा की उसकी उत्पत्ति ब्रह्मा के पैर से हुई है।

और ना ही कोई शूद्र अति शूद्र ये मानेगा की पिछले जन्म के पाप के कारण उसे शूद्र अति शूद्र वर्ण में जन्म मिला है। 


क्युकी उसके पास अब प्रकृति और विज्ञान की वो जानकारी है जिससे वो पुरानी धारणाओ को नहीं मनेगा और उसे गलत भी साबित करेगा। 


लेकिन जब प्रकृति और विज्ञान के नियम जब भारतीय लोगों को पता नहीं थे तब भारतीय समाज में कौनसी धारणा रही होगी ? 

जिस वर्ग के पास ज्ञान का एकाधिकार था उस वर्ग ने लोगो के दिमाग में क्या क्या धारणा  डाली होगी ? 


इसकी शुरुवात होती है तब जब आर्यो के ही एक धूर्त कपटी वर्ग ने उनको ब्रह्म का ज्ञान हुआ है और उनका जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ है ये दावा करके खुदको ब्राह्मण शब्द से चिन्हित करके बाकीओ से अलग कर लिया 


अब कोई वर्ग खुदको दुसरो से उपर तभी दिखा सकता है जब वो सामने वाले मनुष्यो को भी किसी और शब्द से चिन्हित करके उन्हें अपने से अलग रखे 


यह व्यवस्था थोपना राजाश्रय के बिना संभव नहीं है ये बात बामन जानते थे 

इसलिए राजाओ का ब्रेन वाश करना बेहद जरूरी था

राजाओ को उनकी व्यवस्था स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं थी क्युकी उस व्यवस्था से उनका भी वैश्य शूद्र,अति शूद्रो पर वर्चस्व रहने वाला था। 


अब राज्य व्यवस्था को चलाने के लिए लिखे जा रहे थे धर्मसुत्र और स्मृति ग्रंथ जिसमें शूद्र और अति शूद्र पर तरह तरह की पाबंदियां थी। 


पुरुष सुत्त द्वारा वर्ण व्यवस्था को धार्मिक मान्यता पहले से ही दी गई थी। 


दर्शन उपनिषद् के कर्म फल, पुनर्जन्म सिद्धांत का भी बामनो ने इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इस्तेमाल किया। 


जैसे छान्दोग्य उपनिषद् 5-10-7 में लिखा है, 


पिछ्ले जन्म में पुण्य कर्म करने से उच्च वर्ण में जन्म मिलता है, पिछले जन्म पाप करने से शूद्र या चांडाल का जन्म मिलता है। 


दार्शनिक और ग्रंथ लेखक सभी बामन थे, उन्होंने ये धारणा बनाई थी वर्ण व्यवस्था अनादि काल से चली आ रही है और ईश्वर कृत है,

आपको कर्म फल के अनुसार अच्छे बुरे वर्ण में जन्म मिलता है


चार्वाक और बुद्ध ने इस सिद्धांत को चुनौती ज़रूर दी लेकिन समाज में उनके सिद्धांतों को मान्यता नहीं मिली। 


भारतीय समाज में सदियों तक से धारणा बनी रही की जिस वर्ण में जन्म होता है वो हमारे पिछ्ले जन्म का फल है। 


क्युकी भारतीय लोगों को तब प्रकृति और विज्ञान के नियम पता थे ही नहीं की  इस सिद्धांत को गलत माने। 

1925 में भारत आयी अमेरिकन यात्री कैथरीन मेयो आपनी मदर इंडिया पुस्तक में लिखती है अछूत खुद ये मानते है कि उन्हें पिछले जन्म में किए पाप के कारण अछूत जन्म मिला है।


बामनो द्वारा राजश्रय का आधार लेकर जो धारणाये फैलाई गई थी वहीं  उस समय की सामाजिक मान्यताएं थी, और धर्म ग्रथ लेखक भी बामन होने के कारण उसे धार्मिक मान्यता थी, राज्य व्यवस्था जिन स्मृति ग्रंथो से चलती थी उसने इस व्यवस्था को कानूनन मान्यता प्रदान कि थी। 


राजा भले ही नॉन ब्राह्मण हो लेकिन सेनापति, प्रधान मंत्री और पूरा मंत्री मंडल बामनो से भरा होता था। 

जो कि अपने वर्ग के हितों की रक्षा के लिए हमेशा जागृत रहते थे। 


अब सवाल ये है कि इस व्यवस्था से शूद्र और अति शूद्रो पर अत्याचार किस तरह से हुए 


अत्याचार का मतलब सिर्फ ये नहीं होता कि आप किसी को लाठी से पिटे। 


अत्याचार कई तरह के होते है, 


खुदको एक अलग शब्द से चिन्हित करके सारे विषेशाधिकार अपने पास रखना और दूसरे वर्ग को उनके मूलभूत अधिकारों से भी वंचित रखना यही सबसे बड़ा अत्याचार है। 


शूद्र अति शूद्रो के लिए स्मृति ग्रंथो में क्या क्या नियम है, बामन वर्ण के लिए क्या क्या विशेषाधिकार है इसपर पहले से ही बहुत सारे आर्टिकल्स गूगल पर उपलब्ध है, 

इसलिए हम इस बारे मी ज्यादा नहीं लिखेंगे। 


अब कुछ लोगों के दिमाग में ये सवाल आ रहा होगा कि मध्य काल में मुस्लिम राजाओ का शासन था तब शूद्र अति शूद्रो पर अत्याचार कैसे हुए ? 


इसका जवाब हमें मिलेगा डॉ बाबासाहेब आंबेडकर समग्र वाड़मय हिंदी, खंड 10 से 


जैसे कि हम पहले ही बात कर चुके है वर्ण व्यवस्था/जाती व्यवस्था को केवल दार्शनिक और कानूनन मान्यता ही नहीं धार्मिक मान्यता भी थी 


डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इसपर कहते है, 


यह मानना पड़ेगा कि जाति की गाड़ी को आगे चलाते रहने वाले दो शक्तिशाली इंजन थे - कानून और धर्म , निस्संदेह इन दोनों में से धार्मिक मान्यता प्रमुख मान्यता थी


(डॉ बाबासाहेब आंबेडकर, समग्र वाड़मय, हिंदी, खंड 10 पृष्ठ 66)



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कुल मिलाकर बात ये है मध्य काल में सत्ता मुस्लिम राजाओं की जरूर रही लेकिन बामन धर्मी लोगों में जो दार्शनिक और धार्मिक मान्यताएं थी वो जैसे कि तैसी बनी रही। 


वो दार्शनिक धार्मिक मान्यता जैसे कि हमने ऊपर ही बताया है, आपका जन्म जिस वर्ण/ जाती में हुआ है वहीं काम आपको करना है और ये आपके पिछले जन्म के कर्म का फल है। 

आपका जन्म अछूत जाती में हुआ है तो आपको ज़िन्दगी भर अछूत बनकर ही रहना होगा ये आपके पिछले जन्म के कर्मो का फल है

कौन बामन होने के सारे फायदे उठाने वाला है और कौन ज़िन्दगी भर अछूत बनकर रहने वाला है ये बात मां के पेट से ही तय होती थी


समय आगे बढ़ता गया और अंग्रेज़ो के साथ एक नई शिक्षा नीति भारत आयी, 


जिसमें पढ़ने वाले भारतीयों को प्रकृति और विज्ञान की बहुत सारी बाते समज आ रही थी, 


समाज में फैली हुई बहुत सारी धारणाएं, रूढ़ि, परम्परा, कुप्रथा बुद्धिजीवी लोगों को गलत लगने लगे थे। 


यही कारण है कि सवर्ण समाज सुधारक अंग्रेज़ो के काल में हुए। 


फूले, बाबासाहेब आंबेडकर जैसे क्रांतिकारी भी अंग्रेज़ो की आधुनिक शिक्षा के कारण ही बने


इस तरह से हम देखते है की हम किसी धारणा, रूढ़ि, परम्परा, कुप्रथा को हम तभी चुनौती दे सकते है जब हमारे पास वो आधुनिक शिक्षा हो जिससे हमें प्रकृति और विज्ञान के नियम को समझें और पुरानी सभी धारणाओं को चुनौती दे। 


शूद्र अति शूद्रों के लिए ऐसा करना अंग्रेज़ो के काल से पहले असंभव था 


क्षत्रिय राजाओं द्वारा भी वर्ण व्यवस्था के सभी नियमों को कानूनन मान्यता थी, 

दार्शनिक और धार्मिक मान्यता के कारण वो सारे नियम अंग्रेज़ो के काल तक चलते रहे जब तब आधुनिक शिक्षा से हमें प्रकृति और विज्ञान के नियम पता नहीं चले। 


इसलिए बामनों ने कानूनन, दार्शनिक, धार्मिक मान्यता के आधार पर शूद्र अति शूद्रो पर हजारों साल तक अत्याचार किए इस सत्य को कोई नहीं नकार सकता

Comments

  1. अच्छा लिखते हो कार्य जारी रखो....

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  2. अच्छा लिखते हो कार्य जारी रखो....

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