वेदों में विज्ञान या अज्ञान

 



पिछले 1 शतक से वेदों में विज्ञान होने का दावा किया जा रहा है, आधुनिक काल में धर्म का मार्केटिंग करने के लिए। 
इसकी शुरुवात हुई थी दयानंद और उसके आर्य समाज से 

आज के समय में 99.9% लोगों ने वेद पढ़ना तो दूर उसे देखा भी नहीं होता। 

इसी का फायदा उठा कर धर्म का मार्केटिंग करने वाले संघी मनुवादी दयानंदी अलग अलग कॉपी पेस्ट वायरल करके या वीडियो बनाके वेदों में विज्ञान होने का दावा करते है 

लेकिन जब हम वेद उठा कर पढ़ते है तब उसमें विज्ञान तो नहीं लेकिन अज्ञानता से भरी हुई विज्ञान विरोधी बाते जरूर मिलती है 

उसी मे से कुछ उदाहरण यहां में दिखता हूं



पृथ्वी स्थिर है 


अथर्व वेद 6-77-1 के अनुसार पृथ्वी स्थिर है 

सूर्य लोक ठहरा हुआ है, पृथ्वी ठहरी हुई है, यह सब जगत ठहरा हुआ है ||1||




ऐसी ही बात अथर्व वेद 6-44-1 में भी लिखी हुई है 

ठीक यही भाष्य अथर्व वेद के आर्य समाजी भाष्य कार क्षेमकरण दास त्रिवेदी ने भी किया है 


ऋग्वेद 10-89-4 अनुसार इन्द्र ने पृथ्वी को रोखकर रखा है

 इन्द्र अपने कर्मो द्वारा पृथ्वी को रोके हुए है||4||


यजर्वेद 5/16 में भी पृथ्वी को स्थिर कहा गया है 

आप स्वर्ग और पृथ्वी को स्तंभित किए हुए है 


आकाश ब्रह्मा का सिर है 


अथर्व वेद 1-7-32 में द्युलोक को ब्रह्मा का सिर कहा गया है 


आकाश की पुत्री 


वेदों में आकाश को पुत्री होने का भी दावा किया गया है 

हे आकाश पुत्र उषे आप दीप्ति से सर्वत्र प्रकाशित हो 
ऋग्वेद 1-48-9 



पृथ्वी को बैल ने धारण किया हुआ है 


अथर्व वेद 4-11-1 के अनुसार 
पृथ्वी को बैल ने धारण किया हुआ है 

वृषभ रूपी ईश्वर ने पृथ्वी को धारण किया है||1|| 


                      


  सूर्य चंद्र एक दूसरे का पीछा करते है 


अथर्व वेद 7-81-1 के अनुसार चंद्र सूर्य एक दूसरे का पीछा करते है 

दो बालक( सूर्य और चन्द्र) क्रीड़ा करते हुए, एक दूसरे का पीछा करते हुए समुद्र तक पहुंचते है||1|| 




रूद्र का ओषधि मूत्र 


अथर्व वेद 6-44-3 में रूद्र देवता के मूत्र की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि उसका मूत्र औषधी और अमृत की तरह है 



सूर्य के सात घोड़े 


ऋग्वेद 1-50-8 के अनुसार सूर्य हरित नाम के 7 घोड़ों के रथ में बैठकर गमन करता है 
 



यही बात ऋग्वेद 4-45-6 में भी लिखी हुई है 





अन्धकार में छुपा हुआ सूर्य 


ऋग्वेद 3-49-5 के अनुसार इन्द्र जब  गौओ को खोजने निकले तब गहन अन्धकार में छुपे हुए प्रकाश पुंज सूर्य को प्राप्त किया 





 आकाश खम्बो पर टिका है 


ऋग्वेद 10-115-5 के अनुसार इन्द्र ने स्तंभ द्वारा अंतरिक्ष ऊपर धारण किया हुआ है 





सूर्य ग्रहण असुर के कारण 


ऋग्वेद 5-40-5 के अनुसार जब स्वर्भानु नामक असुर जब सूर्य को ढक देता है तब ग्रहण लगता है 





चंद्र पानी पर दौड़ता है 



अथर्व वेद 18-4-89 के अनुसार चंद्र पानी पर दौड़ता है

चंद्र लोक जलो के भीतर सूर्य प्रकाश में दौड़ता रहता है||89|| 




कीड़े मारने के उपाय 


अथर्व वेद 5-23-5 के अनुसार मंत्रो द्वारा कीड़ों को मारा जा सकता है 





पृथ्वी चपटी है 


ऋग्वेद  8-25-18 में पृथ्वी के अंतिम सीमा की बात की गई है 
इससे साबित होता है आर्य पृथ्वी को चपटी मानते थे और उस समय ये धारणा भी हुआ करती थी कि पृथ्वी की कोई अंतिम सीमा है 





अथर्व वेद 15-7-1 में भी पृथ्वी के अंतिम सीमा की बात की गई है 





अन्धकार का कारण 


ऋग्वेद 1-115-4 के अनुसार सूर्य जब हरित नाम के सात घोड़ों को रथ से अलग करता है तब अंधेरा याने रात्रि होती है 






तो ये थे वेदों कि कुछ विज्ञान विरोधी बाते, ये बहुत ही थोड़े उदाहरण हैं ऐसी विज्ञान विरोधी बाते आपको हर वेद में जगह जगह मिलेगी 

इस तरह से हम देखते है की वेदों में विज्ञान तो नहीं लेकिन विज्ञान विरोधी बाते जरूर है। 

लेकिन 99.9% लोगों ने वेद ना पढ़े होने के कारण धर्म का मार्केटिंग करने वाले लोग वेदों में विज्ञान होने का दावा करते है ताकि पढ़े लिखे लोग भी गर्व के साथ अपने धर्म को चिपके रहे। 












                                  







Comments

  1. ye sab mene check kiye sarasvati dhayand ke bhasye se ek bhi match nhi krta

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    1. ये सभी ग्रन्थ अलग अलग ब्राह्मणों ने बिना किसी सलाह मशवरा के अपने अपने ढंग से अपना रोजगार चलाने के लिए लिखे गए हैं इनमें कोई प्रामाणिक तत्थ नहीं है सभी ग्रन्थ काल्पनिक और अन्धविश्वास से ग्रसित है इनको लिखने मात्र एक ही उद्देश्य था कि ब्राह्मण वर्ग आराम से दूसरों को मुर्ख बना कर अपना पेट भरता रहे!!!!!

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  2. चुतिये मादरचोद झुठ फैला रहा है

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  3. स्वामी दयानंद सरस्वती के भाष्य से अपने तथ्य साबित करें तो बेहतर होगा

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