क्या गीता मनुस्मृती मे व्यवसाय आधारित वर्ण व्यवस्था हैं
बहोत सारे लोग गीता मनुस्मृति में व्यवसाय आधारित वर्ण व्यवस्था की बात करते है।
यहां हमने कर्म शब्द का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया है क्युकी आज कल लोग व्यवसाय के लिए कर्म शब्द का इस्तेमाल कर रहे है जबकि दर्शन उपनिषद् में कर्म शब्द की अलग ही व्याख्या है
दर्शन उपनिषद् में कर्म की व्याख्या ये है आपको यह को जन्म मिला है वो पिछेले जन्म के कर्मों का फल है
ऐसे ही कर्मो का फल भुगतने के लिए आपको बार बार 84 लाख योनियों से पुनर्जन्म लेना पड़ता है
ये जन्म किस प्राणी का या मनुष्य में किस वर्ण का मिला है ये पिछले जन्म के कर्म पर आधारित होता है
और यह बात हम अपनी तरफ से नहीं कह रहे है बल्कि दर्शन उपनिषद् ही ऐसा कहते है
छान्दोग्य उपनिषद् ही देख लीजिए
जिसमें 5-10-7 लिखा है कि
पिछले जन्म के कर्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य जन्म मिलता है और पिछले जन्म के पाप से कुत्ता या चांडाल का जन्म मिलता है
तो कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का मतलब भी यही है कि आपको कौनसे वर्ण में जन्म मिलने वाला है य पिछले जन्म के कर्मों से तय होता है
गीता 4/13 के अनुसार
(गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचा गया है। )
इसमें भी कर्म की व्याख्या यही है कि
पिछले जन्म के कर्मों के आधार पर आपको अच्छे बुरे वर्ण में जन्म मिलेगा।
यहां कर्म भावी जन्म का कारण मात्र है।
जीवों को कर्म फल भुगतने के लिए ईश्वर उन्हें विभिन्न वर्णों में उत्पन्न करता है
(यह बात हम नहीं बल्कि आपके दर्शन उपनिषद् कहते है)
कुछ लोग मनुस्मृति 10/65 के आधार पर वर्ण बदलने की बात को सिद्ध करने की कोशिश करते है
यहां वर्ण संकरता का प्रकरण चल रहा है कि भिन्न भिन्न वर्ण स्त्री पुरुषों से उत्पन्न होने वाले बालको की सामाजिक स्थिति क्या रहेगी
10/64,65 में बस इतना कहा गया है कि ब्राह्मण से शूद्र जाती की स्त्री मे उत्पन्न बालिका ब्राह्मण से व्याही जाय और 7 पीढ़ी तक ऐसा ही चलता रहे तो वह अपनी नीच योनि से उद्धार पाकर 7 वी पीढ़ी में ब्राह्मण होता है
यहां 7 पीढ़ी के बाद वर्ण बदलने की बात है और वो भी तब जब शूद्र स्त्री से उत्पन्न बालिका का पिता ब्रह्मण हो और पती भी ब्राह्मण हो तब लगतार ऐसा 7 पीढ़ी तक चलने के बाद वो संतान ब्राह्मण बनती है।
और यहां भी जन्म को ही प्रधानता है क्युकी उस संतान का पिता और माता का पिता दोनों ब्राह्मण होना ज़रूरी है
तो इससे साबित होता है कि गीता और मनुस्मृति दोनों ग्रंथो में व्यवसाय आधारित वर्ण व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं है।
और शास्त्रों के अनुसार कर्म की व्याख्या क्या है ये तो हमने उपर ही बता दिया है
वर्ण और उपजीविका दोनों अलग
कुछ लोग वर्ण व्यवस्था की तुलना आज के आधुनिक उपजीविका से करते है
जबकि ये पूरी तरह से गलत है उपजीविका कोई भी इंसान कई बार बदल सकता है, उसके बेटे की उपजीविका भी अलग हो सकती है, आपस में शादियां होती है और कानूनी भी सबके लिए समान है।
लेकिन वर्ण का ऐसा नाही हैं वर्ण अलग अलग बंदिस्त गट है, एक के ऊपर एक ऐसा सबका एक अलग स्टेटस है, ये व्यवस्था सदियों तक चलती रहे इसलिए शास्त्रों में वर्णों कर बीच आपसी विवाह पर पाबंदी है, जिस वर्ण में जिसका जन्म हुआ है वहीं काम उसे करना अनिवार्य है, कानून सभी वर्णों के लिए अलग अलग है। द्विजो के लिए विशेषाधिकार है तो शूद्रों के लिए कठोर दण्ड।
इस तरह से हम देखते है की वर्ण व्यवस्था और आधुनिक उपजीविका का कोई संबंध नहीं है
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