मनुस्मृती मे स्त्रीयों कि पुजा : वास्तव और भ्रम



संघी मनुवादी दयानंदी कथावाचक बाबा पंडे पुरोहित जब भी अपने धर्म कि महानता बताना शुरु करते है तब ये लोग मनुस्मृति के एक श्लोक का उल्लेख जरुर करते है. 

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।"
अर्थात- जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है, और जहाँ नारियाँ कष्ट पाती है, वहाँ समृद्धि नही होती!

(मनुस्मृति 3/56) 

इस श्लोक के आधार पर मनु समर्थक अपने धर्म कि महानता दिखाते है और ये साबित करने कि कोशिश करते है कि मनु स्त्री विरोधी नही था. 
मनुस्मृति मे तो स्त्रीयों कि पुजा करने कि बात लिखी है. 

इसलिए आज हम इस श्लोक कि सच्चाई जानने कि कोशिश करेंगे 

मनुस्मृति मे स्त्रीयों के विरोध मे क्या क्या लिखा है इसका उल्लेख हम इस लेख मे नही करेंगे क्योंकी उसके बारे मे सभी जागृत बहुजन पहले से हि जानते है. 

यहा हम केवल मनुस्मृति  3/56 समिक्षा करेंगे 

मनुस्मृति 3/56 के उपर के  श्लोक देखने पर पता चलता है यहा प्रकरण विवाह का चल रहा है. 


कन्या की प्रीति के लिए वरपक्ष वाले जो धन दें उसे कन्या के पिता आदि स्वयं न लें, अपितु कन्या को ही दें
(मनु: 3/54)

आगे स्त्रीयों के पुजन कि बात हो रही है. 
यह पुजन भक्ती पुजा करना या अगरबत्ती लगाना नही है.


यहा पुजन का मतलब है विवाहित स्त्री को किसी विशेष प्रसंग या त्योहार के समय उत्तम भोजन और नये वस्त्र देना है. 

क्योंकी धन संपत्ती रखने का अधिकार केवल पुरुषो के पास था.

इसपर मनुस्मृति के प्राचिन भाष्यकार लिखते है 

पितृभिर्भ्रातृभिश्वैताः पतिभिर्देवरैस्तथा  
पुज्या भुषयितव्याश्व बहुकल्याणमीप्युभी:
(मनुस्मृति 3/55) 

इसपर मेधातीथी भाष्य करते है 

पुजा करनी चाहिए का अर्थ है पुत्रजन्म आदि खुशी के मौके पर निमंत्रित कर आदरसहित भोजन कराना चाहिए. वस्त्र आदि अलंकार अर्थात अंग लेपन और श्रृंगार की सामग्री आदि से सजाना चाहिए.
(मनु : 3/55 पर मेधातिथि भाष्य)

12 वी सदी के कुल्लुक भट इसपर भाष्य करते है 

पुजना चाहिए यानी भोजन आदि कराना चाहिए,वस्त्र व अलंकार से सजाना चाहिए.
(मनु: 3/55 पर कुल्लुक भट भाष्य)


प्राचिन दोनो भाष्यकारो के भाष्य से यही सिद्ध होता है कि स्त्रीयों को पुजने का मतलब उन्हें विशेष अवसर पर उत्तम भोजन और वस्त्र देना है 
नाकी आरती उतारकर अगरबत्ती लगा कर पुजा करना है. 

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ये बात तो स्पष्ट है कि मनुस्मृति 3/55,56 के श्लोक भोजन और वस्त्र देने के संबंध मे है. 

अब पता नही इन संघी मनुवादी दयानंदी कथावाचक बाबा पंडे पुरोहितो को इन श्लोकों मे स्त्रीयों का सन्मान कैसे नजर आता है. 

मनु ने विशेष अवसर पर स्त्रीयों को उत्तम भोजन और वस्त्र देने कि बात लिखी है. 
इससे यही सिद्ध होता है स्त्रीयों को भोजन और वस्त्र जैसी सामान्य बात के लिए भी पुरुषो पर परावलंबी होना पडता है. 

इस श्लोक से स्त्रीयों का सन्मान नही बल्की आर्थिक परावलंबी होना सिद्ध होता है. 

अंतः कुल्लुक भट और मेधातीथी भाष्य के आधार पर सिद्ध है कि ये श्लोक भोजन और वस्त्र देने के संबंध  मे है. 

इस श्लोक के आधार पर मनुस्मृति और वैदिक धर्म मे स्त्रीयों का सन्मान दिखाना आधुनिक काल मे अपने कालबाह्य धर्म का मार्केटिंग करने का एक तरीका मात्र है.

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