क्या अंग्रेजो ने मनुस्मृती मे मिलावट कि है ?

 

कालबाह्य ग्रंथो को चिपके हुए पुरातनवादी लोगों के सामने सबसे बडी समस्या ये है कि ग्रंथो को चिपके रहने कि इनकी आदत जाती नही और ग्रंथो मे जो लिखा है उसे ईमानदारी से स्विकार करने कि हिम्मत होती नही. 
ऐसे मे उदय होता है प्रक्षिप्तवाद का 
इनके अनुसार ग्रंथो मे आपको जो भी गलत दिख रहा है वो सब स्वार्थी लोग और मुगल अंग्रेजो द्वारा कि गयी मिलावट है. 

ये पुरातनवादी लोग मनुस्मृति कि इज्जत बचाने के लिए भी यही हतकंडा अपनाते है और मनु आतंकवाद का जिम्मेदार अंग्रेजो को ठहराते है. 
इसलिए आज हम इस दावे कि सच्चाई जानने कि कोशिश करेंगे 

#प्राचिन_मध्यकालिन_भाष्य  

मनुस्मृति पर प्राचिन मध्यकालीन 9 भाष्य उपलब्ध है. उसमे सबसे प्राचिन है 8 वी सदी का मेधातीथी भाष्य जिसमे 2671 श्लोक मिलते है. 
अभी के मनुस्मृति मे 2685 श्लोक मिलते है. 
चौखंबा वाराणसी से 6 और मुंबई से 9 भाष्य सहीत 2685 श्लोको कि मनुस्मृति प्रकाशित कि जाती है. 
प्राचिन मध्यकालीन भाष्यकार और प्रकाशन किसी ने ये नही कहा कि विवादित श्लोक प्रक्षिप्त है. 

#गिताप्रेस_गोरखपूर 

गिताप्रेस ने अपनी मनुस्मृति भुमिका मे कहा है 

(समाज कि जरुरते सामाजिक प्रथाये और समाज कि अपेक्षाये समयसमय पर बदलती रहती है.वर्तमान मनुस्मृति के कुछ आदेश अपनी प्रासंगिकता खो चुके है. हमने मनुस्मृति का प्रस्तुत संग्रह तयार करते हुये उन श्लोको को जानबुझकर शामिल नही किया है,जिसमे हिंसा का विधान है.ऐसी कई प्रथाये जो अतीत मे प्रचलित थी परंतु अब अनैतिक और गिरी हुई मानी जाती है.
अंतः हम ने कुछ ऐसे श्लोको को नही छापा है जो सामाजिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रतित हुये.) मनुस्मृतिसारम् पृष्ठ 4,5  
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गिताप्रेस वाले यहा अंग्रेजो को दोष नही दे रहे है बल्की ईमानदारी से स्विकार कर रहे है कि समाज व्यवस्था  बदलने के कारण कुछ श्लोक कालबाह्य हो गये है. 

#विश्वेश्वरानंद_वैदिक_शोध_संस्थान

इस प्रकाशन ने संक्षिप्त मनुस्मृति के भुमिका मे कहा है 

(मनुस्मृति बडा भारी ग्रंथ है,उस मे लगभग 2685 श्लोक है जिस मे से इस संग्रह मे 685 श्लोक दिये गये है. जैसा कि पहले हि कहा है कि देशकाल के अनुसार व्यवस्थाए बनाई जाती है. कुछ व्यवस्थाएं देशकाल कि सिमा से परे होती है, अर्थात सदा रहने वाली है. इस संग्रह मे जो शाश्वतिक तथा वर्तमान काल मे उपयोगी बाते है उन्हे लिया गया है .) संक्षिप्त मनुस्मृति पृष्ठ 5
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गिताप्रेस कि तरह इस प्रकाशन ने भी स्विकार किया है कि बदलते समय के कारण मनुस्मृति के बहोत सारे श्लोक कालबाह्य हो गये है इसलिए उन्होंने अपनी मनुस्मृति मे केवल 685 श्लोक रखे है जो वर्तमान मे प्रासंगिक है 

#विनोबा_भावे 

विनोबा भावे ने  'मनुशासनम्' पुस्तक लिखी थी (परंधम प्रकाशन,वर्धा)

जिसमे उन्होंने 2685 मे से केवल 445 श्लोको का समावेश किया था. 
अगले श्लोक मे और 45 श्लोको को कम करके केवल 400 श्लोक रखे थे . 

अपनी पुस्तक कि भुमिका का मे वो लिखते है मनुके जो आदेश जो बदलते परीस्थिती मे सामान्य बुद्धी से विपरीत है उन्हें अवश्य त्यागना चाहिए. मनु हमारे लिए आदरणीय है क्योंकी मनु से हमारा रिश्ता आस्था का है तर्क का नही. 
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विनोबा भावे का भी यही मत था कि बदलते समय के कारण मनु के बहोत सारे आदेश कालबाह्य हो गये है. 
उन्होंने ने भी मनुस्मृति के विवादित श्लोको के लिए अंग्रेजो को जिम्मेदार नही माना है. 

#स्वामी_दयानंद 

मनुस्मृति मे मिलावट होने का दावा सबसे पहले स्वामी दयानंद ने किया था. लेकिन उन्होंने इसके लिए अंग्रेजो दोषी नही ठहराया  
पुना प्रवचन मे वो कहते है 

(प्राचिन ग्रंथो मे बनावटी श्लोक डाल कर और नविन रचनाएं कर ब्राह्मणों ने अपनी शक्ती बढाई और स्मृतीयों में भी अपने महत्व के वाक्य मिला दिये. यदि दुष्टाचरण वाले ब्राह्मण कि कोई निंदा करता,तो उसको ब्रह्म विरोधी कह कर उस की हड्डी-हड्डी निकाल लेते.) पुना प्रवचन पृष्ठ 134
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स्वामी दयानंद के प्रक्षिप्तवाद के आधार पर ही आर्य समाजी तुलसराम ने 1912 मे अपनी मनुस्मृति मे 382 श्लोक प्रक्षिप्त घोषित किये.
 समय और लोगों कि सोच बदलने पर धर्म कि इज्जत बचाने के लिए 1981 मे आर्य समाजी सुरेंद्र कुमार ने अपनी मनुस्मृति मे 1500 श्लोक प्रक्षिप्त घोषीत किये. 
लेकिन उन्होंने ने भी विवादित श्लोको को के लिए कभी अंग्रेजो को दोषी नही माना. 

आर्य समाजी मत है कि ग्रंथो मे जो भी विवादित श्लोक है वो स्वार्थी ब्राह्मणो द्वारा मिलावट किये गये है.

#निष्कर्ष  

प्रसिद्ध प्रकाशन,मनु समर्थक विद्वान किसी ने भी मनुस्मृति के विवादित श्लोको के लिए अंग्रेजो को दोषी नही ठहराया है. 

मनुस्मृति मे अंग्रेजो द्वारा मिलावट करने का दुष्प्रचार सबसे पहले राजिव दिक्षित ने किया, 
उसी का व्याख्यान सुन कर बाकी हिंदुत्ववादी अपनी ये गलत धारणा बना लेते है.

हमारा पुछना है कि अंग्रेजो कि मिलावटी मनुस्मृति किस प्रकाशन ने प्रकाशित कि थी ? 
क्या उस प्रकाशन के संस्थापक को अपने ग्रंथ के विशुद्ध श्लोक भी पता नही थे ? जब मिलावट हो रही थी तब किसी धर्मगुरू ने विरोध क्यों नही किया?  

क्या हिंदुओ के पुर्वज इतने मुर्ख थे कि अपने एक भी हस्तलिखित ग्रंथ को सुरक्षित नही रख पाये ? उनकी हर पांडुलिपी मे विधर्मींओ ने मिलावट कर दि ?  

अगर अंग्रेजो ने मिलावट कि है तो किस अध्याय मे कौनसा श्लोक अंग्रेजो ने डाला है ये भी बताना चाहिए, क्योंकी 8 वी सदी के मेधातीथी भाष्य मे वो सारे श्लोक उपलब्ध है जिसपर हम आक्षेप करते है. 

वैसे ये लोग स्त्री,शुद्र विरोधी श्लोक और विज्ञान विरोधी श्लोक प्रक्षिप्त मानते है, 
लेकिन ये सारे श्लोक हजारो कि संख्या मे अन्य ग्रंथो मे भी है. 
अब धर्म कि इज्जत बचाने के लिए किस किस ग्रंथ के कितने श्लोक प्रक्षिप्त घोषीत करेंगे हिंदुत्ववादी?  

हमे लगता है कि धर्म कि इज्जत बचाने के लिए और कालबाह्य ग्रंथो को चिपके रहने के लिए विवादित श्लोको को प्रक्षिप्त घोषीत करने कि जगह जो ग्रंथ जैसा है उसे वैसा हि ईमानदारी से स्विकार करना चाहिए या फिर उसे पुरी तरह से त्यागना चाहिए.



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