वैदिक धर्म मे शुद्र का स्थान भाग-2
पिछले लेख मे हमने रामशरण शर्मा कि पुस्तक 'शुद्रो का प्राचिन इतिहास के आधार पर शुद्रो कि स्थिती का वर्णन किया था.
इस लेख मे हम बाबासाहेब आंबेडकर कि पुस्तक शुद्र कौन थे पुस्तक के आधार पर शुद्रो कि स्थिती का वर्णन करेंगे
अपनी पुस्तक के प्रकरण 3 मे उन्होंने शुद्र के स्तर और स्थिती कि चर्चा कि है.
वो लिखते है
1.कथक संहिता और मैत्रायणी संहिता मे कहा गया है जिस गाय के दुध का उपयोग अग्निहोत्र मे होता हो उसे दुहने कि आज्ञा शुद्र को न दि जाय
सतपथ ब्राह्मण और मैत्रावणी संहिता पंचविंश ब्राह्मण कहते है यज्ञ करते समय न तो शुद्र से बात करनी चाहिए और ना उसकी उपस्थिती मे यज्ञ करना चाहिए
सतपथ ब्राह्मण और कथक संहिता मे प्रावधान है कि शुद्र को सोमपान मे शामिल नही किया जाना चाहिए.
ऐतिरेय ब्राह्मण और पंचविंश ब्राह्मण ने तो निचता कि हद हि कर दि है.
शुद्र दूसरो का दास है इसके अतिरिक्त और कुछ नही है.
2.मनुस्मृति मे कहा गया है ब्राह्मण न तो शुद्र कि राजधानी मे रहे और न ऐसे स्थान पर रहे जहां दुष्ट लोग रहते हो.
वह निच और निम्न जाती कि नगर मे भी निवास न करे.
शुद्र का शव नगर के दक्षिण द्वार से ले जाया जाय. ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य के शव क्रमशः पश्मिम उत्तर और पुर्वी द्वार से ले जाने चाहिए
3.गौतम धर्मसुत्र के अनुसार शुद्र को गाली देने का कोई दंड नही है.
मनुस्मृति का विधान है शुद्र ब्राह्मण का अपमान करे तो उसे प्राणदंड देना चाहिये
4. विष्णु स्मृती के अनुसार एक निम्नजातीय अपने जिस अंग से अपने से उत्तम जाती का अपमान करे राजा उसके उस अंग को कटवा दे
यदि निचली जाती मे जन्मा कोई व्यक्ती उच्चजातीय को गर्व के साथ उसके कर्तव्य का बोध कराये तो राजा उसके मुह मे गर्म खौलता तेल डालने का आदेश दे
यदि शुद्र अपमान जनक भाषा मे किसी उच्चजातीय का नाम ले तो उसके मुह मे दस इंच लंबी गर्म लाल सलाख घुसेड दि जाय
बृहस्पती स्मृती के अनुसार शुद्र धर्म कि शिक्षा दे या वेदवाक्य का उच्चारण करे अथवा ब्राह्मण का अपमान करे तो उसकी जिहवा हि काट देनी चाहिए
5. मनुस्मृति मे व्यवस्था दि गयी है कि ब्राह्मण शुद्र कि संपत्ती पर अधिकार कर सकता है क्योंकी शुद्र का अपना कहने को कुछ भी नही है.
उसके पास जो कुछ है वह उसके स्वामी द्वारा छिन लिया जाय
6.आपस्तंभ धर्मसुत्र कहता है
शुद्र का धर्म अन्य तिन जातींयो कि सेवा करना है. शुद्र ऊंची जाती कि जितनी सेवा करता है उतना हि पुण्य अर्जित करता है
गौतम धर्मसुत्र कहता है किसी आर्य स्त्रि के साथ संभोग करने पर शुद्र का लिंग काट लिया जाय
7. गौतम धर्मसुत्र कहता है शुद्र चौथे वर्ण का और अद्विज है. वह द्विजो कि सेवा से आजिविका अर्जित करता है. उनके पुराने जुते पहनता है और उनकी जुठन खाता है.
शुद्र यदि बैठने लैटने सोने बातचीत मे सडक पर चलने मे समता का दुस्साहस करे तो मृत्यू दंड दे दिया जाय.
8.मनुस्मृति कि व्यवस्था देखिये
ब्राह्मण पर हात उठाने पर हाथ, पद प्रहार करने पर शुद्र के पैर काटे जाये
9.नारद स्मृती कहती है
शुद्र के जिवन का कोई मुल्य नही है कोई भी उसकी हत्या कर सकता है.
उसकी हत्या का कोई भी दंड या प्रायश्चित्त नही है
शुद्र ज्ञान अर्जित नही कर सकता उसको शिक्षा देना पाप और अपराध है
शुद्र को संपत्ती संचय का अधिकार नही है यदि कोई ऐसा करता है तो ब्राह्मण को उसकी संपत्ती हरण करने का पुरा अधिकार है
अंत मे उन्होंने लिखा कि
इन निषेध प्रतिबंधो का स्पष्टीकरण क्या है और ब्राह्मण विधी विधाताओं ने शुद्रो के प्रति इतना निर्दय रुखम क्यों अपनाया ?
शुद्र को केवल शुद्र होने के कारण हि दंडित किया जाता है यह एक रहस्यमयी गुत्थी है जिसको सुलझाना आवश्यक है. ब्राह्मण विधानो मे इस संबंध मे कोई जानकारी उपलब्ध नही है.
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सहायक और संदर्भ ग्रंथ :
शुद्र कौन थे ?
डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर
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