राम को महान दिखाने के लिए फैलायी गई कुछ अफवायें
जबसे जागृत बहुजनो ने शुद्र शंबुक वध के कारण राम के चरित्र पर सवाल उठाने शुरु किये है तब से राम के नाम पर अपना धंदा चलाने वालो को उनका मार्केट डाऊन होने कि चिंता सताने लगी है.
ये लोग साबित करने पर तुले है कि राम शुद्र विरोधी नही था.
इसके लिए वो 2 उदाहरण देते निषादराज गुह और शबरीका
इस लेख के माध्यम से हम उनके दोनो उदाहरणो कि समिक्षा करेंगे
#निषादराज_गुह
इन लोगों का कहना है कि निषादराज गुह और राम एकसाथ एक ही गुरुकुल मे पढे थे इससे सिद्ध होता है कि शुद्रो को पढने लिखने का अधिकार था.
असल मे ये बात गलत है.
निषादराज गुह का उल्लेख अयोध्याकांड 50,51,52 और 84 मे है
जगह जगह वो खुदको राम का सेवक हि कह रहा है.
बताइये मै आपकी क्या सेवा करु(श्लोक 36)
वह राम कि सेवा मे उपस्थित हुआ(श्लोक 37)
हम आपके सेवक है और आप हमारे स्वामी (श्लोक 38)
(देखे वाल्मिकी रामायण अयोध्याकांड 50)
51 वे अध्याय मे निषादराज गुह से कहता है
यह(मै) सेवक तथा इसके साथ के सब लोग वनवासी होने के कारण सब प्रकार के क्लेश सहन करने योग्य है
(श्लोक 3)
जो लोक निषादराज का उदाहरण देकर साबित करना चाहते है कि शुद्रो को भी राज करने का अधिकार था वो इस श्लोक को ध्यान से देखे
यहा निषादराज गुह ने खुदको और अपने सैनिको को वनवासी कहा है.
जाहीर सी बात है कि निषादराज का राज्य वो राज्य नही था रो ब्राह्मणवादी क्षत्रियो का होता था.
जिसमे ब्राह्मण क्षत्रिय सेनापती और ब्राह्मणो से भरा मंत्रीमंडल हुआ करता था, प्रमुख ब्राह्मण राजपुरोहीत हुआ करता था और स्मृती ग्रंथो के अनुसार शासन चलता था.
जबकी निषादराज का ऐसा कुछ भी नही था वो केवल एक वनवासी कबिले का प्रमुख था.
दुसरी बात यह है कि किसी भी अध्याय के किसी भी श्लोक मे ये नही कहा है कि राम और निषादराज गुह एक हि गुरुकुल मे पढे थे.
एक हि गुरुकुल तो क्या उसका किसी भी गुरुकुल मे पढने का कोई उल्लेख नही है.
अफवा फैलाने वालो को मै चुनौती देता हु कि वो अध्याय श्लोक क्रमांक दिखाकर सिद्ध करे कि निषादराज गुह किसी भी गुरुकुल मे पढा था
शास्त्रो मे शुद्र के गुरुकुल प्रवेश का कोई विधान नही है.
मनुस्मृति के अनुसार
गर्भाष्टमेsब्दे कुर्वीत ब्राह्मणस्योपनायनम्.
गर्भादेकादशे राज्ञो गर्भात्तु द्वादशे विश:
अर्थात : ब्राह्मण का गर्भ से आठवे वर्ष में,क्षत्रिय का गर्भ से ग्याहरवें वर्ष में और वैश्य का गर्भ से बाहरवें वर्ष मे उपनयन संस्कार करना चाहिए.
(मनुस्मृति अध्याय 2, श्लोक 36)
उपनयन संस्कार के बाद हि गुरुकुल मे प्रवेश मिलता था और मनुस्मृति मे केवल द्विजो के उपनयन का उल्लेख है. शुद्र के उपनयन का कोई उल्लेख शास्त्रो मे नही है.
इससे सिद्ध है कि शुद्रो को गुरुकुल मे प्रवेश नही मिलता था.
#शबरी
शबरी का उदाहरण देकर ये कहा जाता है कि राम ने उसके जुठे बेर खाये थे.
इससे यह बात पता चलती है कि राम शुद्र विरोधी नही थे और प्राचिन काल मे शुद्रो के साथ कोई भेदभाव नही होता था.
सुरेंद्र अज्ञात अपनी पुस्तक मे इस कथा के विषय मे लिखते है 👇
किस रामायण में राम द्वारा शबरी के जुठे बेर खाने कि बात लिखी हुई है ?
वाल्मिकी रामायण, अध्यात्म रामायण,आनंद रामायण,मंजुल रामायण,तत्वसंग्रह रामायण, रामचंद्रिका आदि किसी भी रामायण मे राम द्वारा शबरी के जुठे बेर खाने का उल्लेख नही है.
अध्यात्म रामायण में शबरी के निम्नजातीय होने का उल्लेख तो मिलता है, लेकिन राम द्वारा उसके जुठे बेर खाने की बात वहां भी नही.
यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि शबरी द्वारा राम को कंदमुल और फल देने का उल्लेख केवल तुलसी कि रामायण मे है, जो सिर्फ 400 साल पुरानी है
उसमे भी जुठे बेर खाने कि गंध तक भी नही.
(रामायण या सितायण,सुरेंद्र अज्ञात, पृष्ठ 54,55)
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अंतः ये बात सिद्ध है कि राम द्वारा शबरी के जुठे बेर खाने कि बात किसी भी रामायण मे नही है
ये केवल राम कि और कालबाह्य धर्म कि इज्जत बचाने के लिए फैलाया गया झुठ है.
लेकिन मुझे उन पुरातनवादी लोगों पर हसीं आती है जो शबरी का उदाहरण देकर राम और अपने धर्म को महान साबित करना चाहते है
क्या कभी एकही जाती के लोग भी एक दुसरे का जुठा खाना खा सकते है ?
जुठा खाना देने मे और खाने मे कौनसी महानता है ?
राम और कालबाह्य धर्म को महान साबित करने के लिए ये लोग जिस नकली कथा को प्रचारित करते है उससे राम और वैदिक धर्म तो महान साबित नही होता लेकिन ये लोग प्राचिन काल के महिला वर्ग को जरुर मुर्ख साबित कर देते है.
क्या कोई महिला इतनी मुर्ख हो सकती है कि वो अपना जुठा पदार्थ किसी को खाने के लिए दे.
वो भी क्षत्रिय राम को ?
मुझे लगता है कि पुरातनवादी लोगों को इस नकली हास्यास्पद कथा को प्रचारित करना बंद कर देना चाहिये.
इससे राम महान सिद्ध नही होते बल्की तुम्हारे हि धर्म का मजाक बन जाता है.
सर ये द्वारका city का क्या चक्कर है, क्या आप इस पर blog post कर सकते हैं।
ReplyDeleteऔर आज कल शिव का कैलाश पर्वत के बारे में भी ये सुनने को मिलता है कि वहां कोई चढ़ नही पाया है इसलिए वहाँ शिव हैं, इस पर भी एक blog post कर दीजिएगा।
पाखंडवाद को ऐसे ही उजागर करते रहे में आपकी website pe नया यूजर जुड़ा हु
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