ऋषी और उनके गुरुकुलों कि सच्चाई




संघी,मनुवादी,दयानंदी,कथा वाचक बाबा,पंडे पुरोहित,दिक्षितवादी लोग
एक दुषप्रचार हमेशा से करते आये है कि अंग्रेजो से पहले इस देश मे लाखो गुरुकुल थे जिसमे  विज्ञान गणित अर्थशास्त्र इत्यादी बहोत सारे 18-20 विषय पढाये जाते थे.
जो भी खोज आविष्कार आधुनिक काल मे हुये है वो सारी बाते गुरुकुल मे पढाने वाले ऋषीओ को पहले से हि पता थी.

क्या यह सब बाते सच है या फिर ये देश के भोले भाले लोगो को पुरातनवादी बनाने का एक षडयंत्र है ?

गुरुकुलो मे क्या पढाया जाता था ये हमे उपनिषदो के कुछ प्रसंगो से पता चलता है.

#प्रश्नोपनिषद

प्रश्नोपनिषद के शुरु मे हि एक प्रसंग आया है

6 लोग ऋषी पिप्पलाद के पास जाते है,
जो परब्रह्म को खोज रहे होते है.
ऋषी पिप्पलाद उन्हे कहते है तुम 1 साल ब्रह्मचर्य का पालन करके तपश्चर्या करो और एक साल यही रहो
बाद मे प्रश्न पुछना
अगर मुझे उत्तर पता होगा तो बताऊंगा
 -यदि विज्ञास्याम: सर्वं ह वो वक्ष्यामः
(प्रश्नोपनिषद् 1/2)



समिक्षा : इस प्रसंग से पता चलता है गुरुकुल मे कोई विज्ञान गणित जैसे विषय ना पढा कर केवल काल्पनिक ब्रह्म का उपदेश दिया जाता था.


#केनोपनिषद्

केनोपनिषद् मे एक हास्यास्पद प्रसंग आया है

गुरुने उपदेश देने के बाद शिष्य कहते है अब हमे  उपनिषद का उपदेश दो ब्रह्मविद्या का उपदेश दो
 भो ब्रुहि (केनोपनिषद् 4/7)
गुरु कहते है मैने तुम्हे ब्रह्मविद्या बताई है, जो उपदेश दिया है वो उपनिषद का हि है.
.- त उपनिषद् ब्राह्मीं वाव त उपनिषद्मब्रुमेति
(केनोपनिषद् 4/7)


समिक्षा : इससे सिद्ध है कि गुरूकुलो के ऋषीओ कि पढाने कि पद्धती इतनी बेकार थी कि विद्यार्थीओ को पता भी नही चलता था कि गुरुजी ब्रह्मविद्या पर उपदेश दे रहे है.
जिन ऋषीओ को काल्पनिक ब्रह्म का उपदेश ठिक से देना नही आता था वो विज्ञान क्या पढायेंगे अपने गुरुकुल मे.


#छांदोग्य_उपनिषद्

छांदोग्य उपनिषद् मे गुरु शिष्य का एक प्रसंग है

हारिद्रुमत गौतम सत्यकामका उपनयन संस्कार करके उसे अपना शिष्य बनाता है

शिष्य बनने पर गौतम उसे कुछ सिखाता नही है बल्की 400 गाय संभालने का काम देता है.

कृशानामबलानां चतुःशता गा निराकृत्योवाचेमाः सोम्यानुसंव्रजेति
(छांदोग्य उपनिषद् 4/4/5)


समिक्षा : वाह रे...! गुरु शिष्य परंपरा का तथाकथित गौरवशाली इतिहास.
सत्यकामका शिष्य बनकर कौनसा फायदा हुआ?
कौनसा ज्ञान मिला उसे?
शिष्य बनाने पर गौतम ने उसे अपनी गायों को चरवाने के लिए कहा लेकिन कोई ज्ञान नही दिया. सच कहे तो गौतम ने उसे शिष्य बनाने के नाम पर अपना नोकर बनाया था.
जिन्हे गुरु-शिष्य परंपरा पर गर्व है वो इस कथा पर विचार करे.

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छांदोग्य उपनिषद् मे हि आगे चलकर सत्यकाम आचार्य बनता है.

उपकोसल नाम का उसका शिष्य उसके लिए 12 साल तक इंधन जमा करने का काम करता रहा.
जिससे सत्यकाम इंधन जलाये और हवन करता रहे.
परंतु सत्यकाम अपने शिष्य को कोई उपदेश नही देता.
उपकोसल ने 12 साल तक अग्नी के लिए इंधन जमा करने का काम किया होता है अंत मे उसे अग्नी से हि ब्रह्म का उपदेश मिलता है.
(छांदोग्य उपनिषद् 4/10/ श्लोक 2,3,4)



समिक्षा : मुझे तो ये गुरु-शिष्य परंपरा कम मालिक-नोकर परंपरा ज्यादा लग रही है. शिष्य बनाने पर उपदेश तो नही दिया लेकिन बेचारे को 12 साल तक इंधन जमा करने का काम जरुर लगा दिया.

#मनुस्मृति

जिन ऋषीओ को महज्ञानी कहा जाता है उनकी प्राचिन कालमे उनकी  क्या स्थिती थी ये मनुस्मृति के 2 श्लोक से हि पता चल जायेगा.

वामदेव ऋषीने भुखसे व्याकुल होकर  प्राणरक्षा के लिए कुत्ते का मांस खाने कि इच्छा कि

(मनुस्मृति 10/106)


भुख लगने पर विश्व मित्र चांडाल के हाथ से कुत्ते का मांस खाने के लिए तयार हुये

(मनुस्मृति 10/108)



समिक्षा : तो ये है आपके ऋषी मुनीओ का गौरवशाली इतिहास?
खाने को ठिक से मिलता नही था और बडे बडे आविष्कार करते थे और गुरुकुलो मे विज्ञान पढाते थे.


अंतः यह सिद्ध है कि गुरुकुलों के ऋषी किसी प्रकार का कोई विज्ञान गणित नही पढाते थे और ना ही कोई आविष्कार करते थे.
वो केवल काल्पनिक ब्रह्म और आत्मा विषय पर उपदेश देते थे.

उपदेश देने के नाम पर ये ऋषी मुनी अपने शिष्यो से नौकरो कि तरह काम करवाते थे.

गायों को संभालना, पाणी भरके लाना,इंधन जमा करके लाना इत्यादी.

संघी मनुवादी,दयानंदी,कथा वाचक बाबा,पंडे पुरोहित,दिक्षितवादी लोग जो दावा करते है कि गुरुकुलों मे विज्ञान गणित सहीत बहोत सारे विषय पढाये जाते थे.
ऋषी मुनी विद्वान सायनटिस्ट या प्रोफेसर कि तरह थे इस बात मे कोई तथ्य नही है.
ये केवल भोले भाले लोगों को काल्पनिक गौरवशाली इतिहास के नाम पर भावनिक करके उन्हें पुरातनवादी बनाने का षडयंत्र है

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