क्या वर्णव्यवस्था कर्म आधारीत थी ?
कालबाह्य अमानविय धर्म कि इज्जत बचाने के लिए संघी मनुवादी,दयानंदी
कथा वाचक बाबा पंडे पुरोहित पिछले कुछ दशक से काफी झुठ फैलाते आये है.
जब बुद्धीवादीओ कि तरफ से आक्षेप किया जाता है कि आपके तथाकथित महान धर्म मे जन्म आधारीत कोई उच्च निच क्यों है? तब ये लोग धर्म कि इज्जत बचाने के लिए दुष्प्रचार करते है कि धर्मग्रंथो मे कोई जन्म से उच्च निच नही है वर्ण व्यवस्था तो कर्म के आधार पर थी.
लेकिन क्या सच मे वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर थी या फिर ये अमानविय धर्म कि इज्जत बचाने के लिए किया गया एक दुष्प्रचार है
आयीये जानते है
मनुस्मृति
दुष्प्रचार करने वाले सबसे पहले मनुस्मृति के नाम से एक श्लोक प्रचारीत करते है
जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं।
ये श्लोक मनुस्मृति के कौनसे अध्याय का कौनसा श्लोक है ये नही बताते.
असल मे ऐसा कोई श्लोक मनुस्मृति मे है हि नही.
मै सभी संघी मनुवादी दयानंदी कथावाचक बाबा पंडे पुरोहितो को चुनौती देता हु कि वो उपर के श्लोक को मनुस्मृति मे दिखा दे.
असल मे मनुस्मृति के हि बहोत सारे श्लोको से ये बात सिद्ध होती है कि वर्ण व्यवस्था जन्म के आधार पर थी
मनुस्मृति मे एक श्लोक है
मंगल्यं ब्राह्मणस्य स्यात् क्षत्रियस्य बलान्वितम्.
वैश्यस्य धनसंयुक्तं शूद्रस्य जुगुप्सितम्......
अर्थात : ब्राह्मण का मंगल सुचक शब्द से युक्त,क्षत्रिय का बलसूचक शब्दसे युक्त,वैश्य का धनवाचक शब्द से युक्त और शुद्र का निंदित शब्द से युक्त नामकरण करना चाहिए.
(मनुस्मृति, अध्याय 2,श्लोक 31)
यहा मनु पहले से हि बता रहे है कि किस वर्ण के बालक का नाम कैसे होना चाहिये, शुद्र बालक का नाम निंदित शब्द से युक्त रखने के लिए कहा है मतलब मनुस्मृति मे शुद्र जन्म से हि निच है.
अलगे श्लोक मे मनु कहते है
शर्मवद् ब्राह्मणस्य स्याद्राज्ञो रक्षासमन्वितम्.
वैश्यस्य पुष्टिसंयुक्तं शुद्रस्य प्रेष्यसंयुतम्
अर्थात : ब्राह्मण का शर्मा शब्द से युक्त,क्षत्रिय का रक्षा शब्द से युक्त,वैश्य का पुष्टी शब्द से युक्त और शुद्र का प्रेष्य(दास) शब्द से युक्त नाम रखना चाहिए.
(मनुस्मृति अध्याय 2,श्लोक 32)
शुद्र बालक का नाम दास शब्द से युक्त रखने के लिए कहा है क्योंकी वैदिक धर्म के अनुसार शुद्र का जन्म उपर के तिन वर्णो कि सेवा के लिए हि हुआ है
इसी अध्याय के 36 वे श्लोक मे मनु कहते है
गर्भाष्टमेsब्दे कुर्वीत ब्राह्मणस्योपनायनम्.
गर्भादेकादशे राज्ञो गर्भात्तु द्वादशे विश:
अर्थात : ब्राह्मण का गर्भ से आठवे वर्ष में,क्षत्रिय का गर्भ से ग्याहरवें वर्ष में और वैश्य का गर्भ से बाहरवें वर्ष मे उपनयन संस्कार करना चाहिए.
(मनुस्मृति अध्याय 2, श्लोक 36)
वैदिक धर्म मे पहले से हि तय किया गया है कि किस वर्ण के बालक का उपनयन संस्कार किस उमर मे होना चाहिये.
इसमे शुद्र बालक के उपनयन संस्कार का कोई विधान नही है. उपनयन संस्कार से हि गुरुकुल मे प्रवेश मिलता था. अब अगर वो गुरुकुल मे पढेगा हि नही तो वो कर्म से ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कैसे बनेगा ?
मनुस्मृति मे आगे लिखा है
शुद्र खरीदा हुआ हो अथवा ना हो उससे नोकर का काम ले क्योंकी ब्रह्माने ब्राह्मण की सेवा के लिए हि उसे बनाया है.
(मनु 8/413)
समीक्षा : यदि आपकी मनुस्मृति कह रही है कि ब्रह्माने ब्राह्मण कि सेवा के लिए शुद्र को बनाया है तो उसे कर्म के आधार पर दुसरे वर्ण मे लाना ब्रह्मा के नियम का उल्लंघन करने जैसा नही है क्या ?
अब आगे देखे....
वेद-विधीसे स्थापित हो या न हो अग्नी जैसे महान देवता है वैसे ब्राह्मण मुर्ख हो या विद्वान वह महान देवता है.
(मनु 9/317)
समीक्षा : इस श्लोक से तो आपकी कर्म आधारीत वर्ण व्यवस्था पुरी तरह से ध्वस्त हो रही है.
मनु स्पष्ट कह रहा है कि कोई ब्राह्मण मुर्ख भी होगा तो भी वह महान देवता है.
उस मुर्ख ब्राह्मण को मनुने शुद्र क्यों नही माना है ?
एक और श्लोक देखे.....
सब बुरे कर्मो मे प्रवृत्त रहने पर भी ब्राह्मण सर्वथा पुज्य है क्योंकी वे पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ देवता है.
(मनु 9/319)
समीक्षा: अब इसपर क्या तर्क वितर्क करोगे आर्य समाजीओ ?
या फिर बचने का कोई रास्ता ना मिलने के कारण श्लोक को प्रक्षिप्त घोषीत कर दोगे.
एक और श्लोक देखे
ब्राह्मण दशवर्षं तु शतवर्षं तु भुमिपम् |
पितापुत्रौ विजानीयाद्रब्राह्मणस्तु तयोः पिता ||
अर्थात : 10 वर्ष के ब्राह्मण को 100 वर्ष का क्षत्रिय अपना पिता माने और खुदको उसका पुत्र माने
(मनुस्मृति : अध्याय 2, श्लोक 135)
अब कोई बताये कि 10 साल के ब्राह्मण को किस कर्म के आधार पर ब्राह्मण घोषीत किया गया है ?
छांदोग्य उपनिषद्
छांदोग्य उपनिषद् एक प्राचिन और प्रमुख उपनिषद् है उसमे भी जन्म आधारीत वर्ण व्यवस्था का हि उल्लेख है
छांदोग्य उपनिषद के अनुसार 👇
जिनका बर्ताव यहा रमणीय रहा है वह जल्दी उत्तम जन्म को प्राप्त होंगे. ब्राह्मण के जन्म को,वा क्षत्रिय के जन्म को वा वैश्य के जन्म को.
पर वह जो यहा निच बर्ताव वाले रहे है वो जल्दी निच योनी मे प्राप्त होंगे.
कुत्ते कि योनीको वा सुअर कि योनीको वा चांडाल कि योनीको.
(छांदोग्य उपनिषद 5-10-7, पंडित राजाराम,पृष्ठ 193)
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छांदोग्य उपनिषद का उपर का श्लोक आर्य समाज के तथाकथित कर्म आधारीत वर्ण व्यवस्था को पुरी तरह से ध्वस्त कर रहा है.
कोई शुद्र,चांडाल कर्म के आधार पर ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कैसे बन सकता है ? वो तो पिछले जन्म के कर्म का फल भोगने के लिए चांडाल योनी को प्राप्त हुआ है.
उसे इस जन्म मे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य बनाना छांदोग्य उपनिषद के कर्म फल सिद्धांत कि काट करने जैसा है
गौतम धर्मसुत्र
गौतम धर्मसुत्र मे लिखा है
शुद्र के वेद पाठ सुनने पर सिसे और जस्त्ते से उसके कान भर दिये जाय,
वेद के अक्षर उच्चारण करने पर उसकी जिभ काट ली जाय, तथा वेदमंत्र धारण करने पर उसका शरीर
काट डाला जाय.
(गौतम धर्मसुत्र 3-2-4, संस्कृत ग्रंथमाला,चौखंबा,हिंदी अनु.ऊपेशचंद्र पांडे, पृष्ठ 118)
जब शुद्र को वेद पढने से रोका जायेगा तो वो कर्म के आधार पर खुदको ब्राह्मण कैसे बना सकता है ?
भगवत गिता
कुछ लोग भगवत गिता 4-13 के आधार पर कर्म आधारीत वर्ण व्यवस्था सिद्ध करने कि कोशिश करते है
श्लोक इस प्रकार है
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।
अर्थात : गुण और कर्मों के विभाग से चातुर्वण्य मेरे द्वारा रचा गया है। यद्यपि मैं उसका कर्ता हूँ, तथापि तुम मुझे अकर्ता और अविनाशी जानो
इस श्लोक मे ये नही कहा है कि ये गुण होने से व्यक्ती ब्राह्मण बनेगा या ये गुण होने से व्यक्ती शुद्र बनेगा
इस श्लोक मे बस इतना कहा गया है कि ईश्वर गुण कर्म के आधार पर चातुवर्ण्य कि रचना कि है
उल्टा इससे जन्म आधारीत वर्ण व्यवस्था सिद्ध होती है.
क्योंकी गिता के अनुसार चातुर्वर्ण्य कि रचना ईश्वर ने कि है.
जब उसने पहली बार ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र तयार किये होंगे तब उसने किस कर्म के आधार पर उन्हें तयार किया होगा ? जाहीर सी बात है कि वो जन्म आधारीत हि ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र थे.
रामायण
वाल्मिकी रामायण उत्तरकांड के अध्याय 73,74,75,76 मे शंबुक वध कि कथा विस्तार से आयी है
कथा के अनुसार शुद्र शंबुक कि तपस्या के कारण एक ब्राह्मण बालक कि मृत्यू हो जाती है जिसके कारण राम उस शुद्र शंबुक का वध कर देते है.
संपुर्ण कथा के ss निकाल कर अपलोड करना संभव नही है जिज्ञासु पाठक गुगल पर संपुर्ण कथा पढ सकते है
अब सवाल ये है कि क्या राम को कर्म आधारीत वर्ण व्यवस्था के बारे मे नही पता था ?
अगर वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर होती तो राम शुद्र शंबुक का वध करने कि जगह उसे कर्म आधारीत ब्राह्मण बना देते
महाभारत
महाभारत के अनुशासन पर्व 27,28,29 मे मतंग ऋषी कि कथा आयी है
मतंग ऋषी कि तपस्या से प्रसन्न होकर इंद्र उसके पास आकर वर मांग ने के लिए कहता है तब मतंग ऋषी कहता है मै ब्राह्मण बन जाऊ मुझे यह वर दिजीए
तब इंद्र कहता है चांडालयोनी मे जन्म लेने वाले को किसी भी तरह का ब्राह्मणत्व नही मिल सकता.
ब्राह्मणत्व अत्यंत दुर्लभ है.
(महाभारत अनुशासन पर्व 29)
क्या देवराज इंद्र को नही पता था कि वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर होती है ? जैसा कि संघी दयानंदी दावा करते है.
अगर वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर होती तो इंद्र उस कठोर तप करने वाले मतंग ऋषी को ब्राह्मण बना देते.
वैदिक काल
अपनी वैदिक काल पुस्तक मे इरफान हबिब लिखते है
ब्राह्मणो को अनिवार्य तौर पर उनकी वंश परंपरा (ब्राह्मण्य) से परिभाषित किया जाता था जिससे उनका वैकल्पिक नाम ब्राह्मण(ब्रह्मन् की संतति) बनाः और इसमें अनुमानतः सिर्फ पिता के वंश परंपरा को ध्यान मे रखा जाता था. शतपथ ब्राह्मण 11.5.7.1 में ऐसे वंशानुक्रम पर ध्यान देते हुए शिक्षा और अध्ययन को ब्राह्मणो का पेशा निर्धारित किया.
वैदिक काल पृष्ठ 58
अंतः ये सिद्ध है कि किसी भी कालखंड मे वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर नहीं थी.
संघी मनुवादी,दयानंदी,कथा वाचक बाबा पंडे पुरोहित द्वारा कर्म आधारीत वर्ण व्यवस्था होने का दावा किया जाता है वो केवल अपने अमानविय धर्म कि इज्जत बचाने का एक असफल प्रयत्न है.
कुछ संघी बहोत सारे काल्पनिक ऋषीओ को कर्म आधारीत ब्राह्मण क्षत्रिय होने का दावा करते है.
जबकी ग्रंथो मे उनके बारे मे ऐसा कुछ लिखा होता ही नही है.
अगले किसी लेख मे हम उन काल्पनिक ऋषीओ के जन्म कथाओ कि समिक्षा करेंगे
Praman aadjarit bahut sahi lekh hai. Eske liye dhanyawad.
ReplyDeleteDhanyawad.... Source कोई नहीं देता आपने दिए....
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