क्या सतीप्रथा मुस्लिम आक्रमण के कारण शुरु हुई थी ?



क्या सती प्रथा मुस्लिम आक्रमण के कारण शुरु हुई थी?

अमानविय धर्म कि इज्जत बचाने वाले संघी मनुवादी, कथावाचक बाबा पंडे पुरोहित,दयानंदी इन सबका सती प्रथा पर मत है कि ऐसी कोई प्रथा हिंदु धर्म मे थी हि नही.
मुस्लिम आक्रमणकारी हिंदु स्त्रीयों को उठा ले जाते थे इसलिए मजबुरी से यह प्रथा शुरु हुई.
लेकिन क्या यह बात सही है? या फिर ये अपने अमानविय धर्म कि इज्जत बचाने कि एक धुर्त निती है ?
 चलिए जानते है

#ऐतिहासिक_प्रमाण

सतीप्रथा का पहला ऐतिहासिक प्रमाण गुप्तकाल का मिला है.
महाराज भानुप्रताप  के सैनिक गोपराज कि युद्ध मे मृत्यू होने पर उसकी पत्नी सती होती है.

इस प्रथा का प्राचिनतम ऐतिहासिक प्रमाण इ.स. 510 मे मिला है.
ऐरण के शिलालेख मे सतीप्रथा का गौरवपूर्ण उल्लेख किया गया है.

(अर्लि इंडीया,रोमिला थापर पृष्ठ 237)


मुस्लिम आक्रमण 8 वी सदी से शुरु हुये थे लेकिन सतीप्रथा के ऐतिहासिक प्रमाण हमे मुस्लिम आक्रमण के सेकडो साल पहले के मिले है.
इससे सिद्ध है कि इस प्रथा का मुस्लिम आक्रमण से कोई संबंध नही है.

#कलचुरी_राजवंश_का_अभिलेख

ग्यारहवीं सदी ईस्वी का यह ऐतिहासिक प्रमाण महत्वपूर्ण है। कलचुरी राजवंश के अभिलेखों से यह सूचना मिलती है कि कलचुरी नरेश गांगेयदेव ने स्वर्ग की कामना से प्रयाग में आकर जब 1041 ईस्वी में अपने प्राण त्यागे तो अंत्येष्टि मे उनकी एक सौ रानियां भी साथ में सती हो गई थीं। [स्रोत : Corpus Inscriptionum Indicarum, vol.4, no.56 (p.293) and no.57 (p.303). See : Dikshit, R.K., The Candellas of Jejakbhukti, p.98. Abhinav Prakashan, New Delhi, 1976. ISBN: 9788170170464]




कुछ लोग कहेंगे कि यह एक सामाजिक कुप्रथा थी इसका धर्म से कोई लेना देना नही.
लेकिन यह बात भी गलत है. प्रमुख हिंदु धर्मग्रंथो मे सती प्रथा का स्पष्ट उल्लेख किया गया है.


#बाबासाहेब_आंबेडकर

बाबासाहेब आंबेडकर ने विष्णु स्मृती के विज्ञानेश्वर टिका के आधार पर कहते है

याज्ञवल्क्य स्मृती की मिताक्षरा टीका के लेखक विज्ञानेश्वर उक्त श्लोक का टिका अर्थात व्याख्या करते हुये निम्नलिखित मत व्यक्त करते है
- वह विष्णु स्मृती के अनुसार विकल्प के रुप मे ब्रह्मचर्य का जीवनयापन करने की स्थिती में होती है.
पति के मृत्यू के बाद या तो ब्रह्मचर्य उसके साथ चिता में बैठना. विज्ञानेश्वर इसमें अपना मत जोडते हैं कि उसके चिता में बैठने का बडा महत्व है.

इससे बडी सरलता और स्पष्टता से सती-प्रथा कि उत्पत्ति की स्थितियों को जाना जा सकता है.


(प्राचिन भारत में क्रांती और प्रतिक्रांती,डाॅ बाबासाहेब आंबेडकर, पृष्ठ 194)


#वेद

अथर्ववेद का एक मंत्र देखे

इयं नारी पतिलोक वृणाना निपद्दत उप त्वा मर्त्य प्रेतम् धर्म॔ पुराणमनुपालयंती तस्यै प्रजां द्रविणं चेह धेहि

अर्थात : यह #नारी स्वर्ग अर्थात पतिलोक को प्राप्त करणे कि इच्छा से हे मनुष्य तुझ मृत के समिप पोहचती है.तुम्हारे साथ जल #मर रही है,यह ऐसा पुरातन धर्म का पालन करती हुई कर रही है. इस तरह तुम्हारे साथ मर रही इस स्त्री को जन्मांतर मे इस लोक और परलोक मे भी तुम पिता पौत्र धन प्रदान करना.

(अथर्ववेद : 18/3/3)


ऋग्वेद मे देखे

इमा नारीरविधवा: सुपत्नीरांजनेन सर्पिषा संविशंतु अनश्रवोsनमिवा: सुरत्ना आरोहंतु जनयो योनिमग्रे

अर्थात: ये #नारीयां #पति के साथ #जल रही है, अंतः पति के साथ होने के कारण अविधवा है. इस के शरीरो पर घी मला हुआ है.आखो मे अंजन लगा है.ये आंसशुन्य है, हे #अग्नि ये तुम में प्रवेश कर रही है.
ताकी ये निर्दोष और सुंदर नारीयां अपनी पतीयों से वियुक्त ना हो.

(ऋग्वेद 10/18/7)


#रामायण_महाभारत

रामायण महाभारत मे भी सती प्रथा का उल्लेख मिलता है

दशरथ के मृत्यू के बाद कौशल्या सती होने जा रही थी लेकिन बाकी स्त्रीयो ने उसे रोक लिया

मै महाराज के शरीर को आलिंगन कर अग्नी मे प्रवेश करुंगी
(वाल्मिकी रामायण,अयोध्याकांड 66/12)

वाल्मिकी रामायण के उत्तर कांड मे लिखा है कि

शंभुदैत्यके हाथ से कुशध्वज का मृत्यू होने पर उसकी पत्नी सती हुई थी


मेरी महाभागा माता को बडा दुःख हुआ और वो #पिताजी के शवको ह्रदय से लगाकर #चिता कि #आग मे प्रविष्ट हो गयी.

(वाल्मिकी रामायण,उत्तरकांड 17/14)





महाभारत मे भी अनेक स्थलो पर सतीप्रथा का उल्लेख है

पांडु के मृत्यू के बाद माद्री सती हुई थी

जनमेजय! कुंतीसे यह कहकर पांडुकी यशस्विनी धर्मपत्नी माद्रि चिता कि आग पर रखे  हुये नरश्रेष्ठ पांडुके शव के साथ स्वयं भी चितापर जा बैठी.

(महाभारत,आदिपर्व 124/31)




 महाभारत मे वासुदेव कि मृत्यू बाद उनकी चार पत्नीया सती होने का उल्लेख है

युवतीओ मे श्रेष्ठ देवकी,भद्रा,रोहिणी तथा मदिरा ये सब कि सब अपने पतीओ के साथ चितापर आरुढ होने को उद्दत हो गयी (श्लोक 18)

 चिता कि प्रज्वलित अग्नि मे सोये हुए विर शुरपुत्र वासुदेवजी के साथ उनकी पुर्वोक्त चारो पत्नीया भी चिता पर जा बैठी और उन्ही के साथ भस्म हो पतिलोक को प्राप्त हुई. (श्लोक 24)

(महाभारत, मौसलपर्व 7/ श्लोक 18 आणी 24)


कृष्ण के मृत्यू के बाद उनकी 5 रानीयां सती हुई थी

रुक्मिणी,गांधारी,शैव्या,हैमवती और जांबवती ने पतिलोक कि प्राप्ती के लिए अग्नी मे प्रवेश किया.

(महाभारत,मौसलपर्व 7/73)


 #पराशर_स्मृती

पराशर स्मृती मे स्त्री को सती होने का लालच दिया गया है

जो स्त्री अपने पती के मरने पर उसी के साथ प्राण त्याग करती है वह साढे तिन करोड अर्थात जितने रोंगटे देह पर है उतने बरस स्वर्ग मे वास करती है.
(पराशर स्मृती, 3/32)


#गरुड_पुराण

सुरेंद्र अज्ञात ने गरुडपुराण के संदर्भ से सतीप्रथा के विधी का उल्लेख किया है

 नारी अपने को सुहागिन कि तरह सजाये,अच्छे वस्त्र पहने,आखो मे अंजन लगाये.सुर्य को नमस्कार करके चिता कि परिक्रमा करे,चिता पर बैठ कर पति का सिर अपनी गोद मे रख ले.फिर सहेलीयों को आग लगाने को कहे. आग मे दुखको इस तरह जला दे मानो वह गंगा के शितल जल मे डुबकी लगा रही हो.
(गरुडपुराण 10/36-40)

पहा 👉 क्या बालु कि भित पर खडा है हिंदु धर्म (सुरेंद्र अज्ञात),पृष्ठ 663


यह हो गया ग्रंथो का मत जमिनी स्तर पर हकीकत यह थी अगर कोई स्त्री सती होने से इंकार कर दे तो उसे भांग पिलाकर या हाथ पैर बांध कर चिता पर फेका जाता था.

ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध समाज को जागरूक किया। जिसके फलस्वरूप इस आन्दोलन को बल मिला और तत्कालीन अंग्रेजी सरकार को सती प्रथा को रोकने के लिये कानून बनाने पर विवश होना पड़ा था। अन्तत: उन्होंने सन् 1829 में सती प्रथा रोकने का कानून पारित किया। इस प्रकार भारत से सती प्रथा का अन्त हो गया।

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अंतः यह सिद्ध है कि सती प्रथा हिंदुओ कि धार्मिक प्रथा थी इसका मुस्लिम आक्रमण से कोई लेना देना नही है.
संघी मनुवादी,कथावाचक बाबा पंडे पुरोहित,दयानंदीओ द्वारा इसे मुस्लिम आक्रमण के साथ जोडना अमानविय धर्म कि इज्जत बचाने का एक असफल प्रयास है

Comments

  1. कायको बंडलबाजी मार रहे हो....
    इस लेख का खंडन

    पहिली बात अथर्ववेद मे मात्र १० मण्डल है
    यह १८ वा मण्डल कहां से लाया बच्चे...🤣🤣🤣

    ऋगवेद की ऋचा का शतप्रतिशत झुठा अनुवाद अर्थ का अनर्थ

    यहा मै ऋचा और शब्दशः अर्थ दे रहा हु भेजे मे उतारो झुठ फैलाना बंद

    इ॒मा नारी॑रविध॒वाः सु॒पत्नी॒राञ्ज॑नेन स॒र्पिषा॒ सं वि॑शन्तु । अ॒न॒श्रवो॑ऽनमी॒वाः सु॒रत्ना॒ आ रो॑हन्त॒ं जन॑यो॒ योनि॒मग्रे॑ ॥

    ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:18» मन्त्र:7 |
    अष्टक:7» अध्याय:6» वर्ग:27» मन्त्र:2 | मण्डल:10» अनुवाक:2» मन्त्र:7

    ऋचेचे देवता: पितृमेधः
    ऋषि: सङ्कुसुको यामायनः छन्द: निचृत्त्रिष्टुप्
    स्वर: धैवतः

    शब्दशः अर्थ

    पदार्थान्वयभाषाः - (इमाः-अविधवाः-सुपत्नीः-नारीः-आञ्जनेन सर्पिषा संविशन्तु) ये जीवित पतिवाली सुशील नारियाँ भली प्रकार नेत्रमुखप्रक्षालन के कारण जल का सेवन करें (अनश्रवः-अनमीवाः सुरत्नाः-जनयः अग्रे योनिम्-आरोहन्तु) आँसू रहित हुई स्वस्थ युवतियाँ पूर्व से ही घर में आ विराजें ॥७॥

    भावार्थभाषाः - शव के साथ जानेवाली स्त्रियाँ जो पतिवाली और युवति हों, वे किसी जलाशय तक पहुँचकर वहाँ नेत्र मुख आदि धोकर पुनः आँसू रहित स्वस्थ हुई घर को वापिस चली आवें ॥७॥

    उपरसे वामपंथी रोमीला थापर बाई का प्रमान कोई कहि पै मान्य नहि
    पुरा लेख झुठ 👎👎👎

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