भागवत पुराण भांग के नशे में लिखा गया ग्रंथ







 भगवत पुराण भांग के नशे मे लिखा गया ग्रंथ 


भगवत पुराण 18 प्रमुख पुरानो मे से एक हैं 

आस्था संस्कार चॅनल पर प्रवचन देणे वाले कथा वाचक बाबा पंडे सबसे ज्यादा कथा इसी पुराण की बताते है । 

इस ग्रंथ में ऐसी ऐसी बाते लिखी गई है जिसे पढ़ के कोई साइंटिस्ट कपड़े सीने की रस्सी लेकर केले के पेड़ को लटक कर आत्महत्या कर लेगा । 


14000 किमी ऊंचा पेड़ 


भागवतकार को ऐसे पेड़ की जानकारी थी जो ग्यारह सौ योजन ( 14,080 कि.मी. ) ऊंचा था 


चतुर्बेतेषु चूतजंबूकदंबन्यग्रोधाश्चत्वारः पादपप्रवराः पर्वतकेतव इवाधिसहस्रजनो नाहास्तावद् विटपविततयः शतयोजनपरिणाहाः .


भगवत पुराण 5-16-12 


अर्थात इन चारों - मंदर , मेरुमंदर , सुपार्श्व और कुमुद पर्वत - के ऊपर इन की जाओं के समान क्रमशः आम , जामुन , कदंब और बड़ के चार पेड़ हैं . इन में से स्यक ग्यारह सौ योजन ( 14,080 कि.मी. ) ऊंचा है और इतना ही इन की शाखाओं विस्तार है . इन की मोटाई सौसौ योजन ( 1,280 कि.मी. ) है . पहाड़ पर ग्यारह मायोजन ( 14,080 कि.मी. )





शिव के वीर्य से सोने चांदी की उत्पत्ति 


भागवत पुराण में शिव और मोहिनी की कथा आती है जिसने अनुसार मोहिनी के पीछे भागते हुए शंकर का वीर्य स्खलित हो गया था 


तस्यानुधावतो रेतश्चस्कंदामोघरेतसः , शुष्मिणो यूथपस्येव वासितामनु धावतः . यत्र यत्रापतन्मह्यां रेतस्तस्य महात्मनः , तानि रूप्यस्य हेम्नश्च क्षेत्राण्यासन्महीपते .


भागवत पुराण 8-12-32,33 


अर्थात : कामुक हथिनी के पीछे दौड़ने वाले मदोन्मत्त हाथी के समान वह मोहिनी के पीछेपीछे दौड़ रहे थे . यद्यपि शंकर का वीर्य अमोघ है , फिर भी मोहिनी की माया से वह स्खलित हो गया . शंकर का वीर्य पृथ्वी पर जहांजहां गिरा , वहांवहां सोनेचांदी की खानें बन गईं .




लगता है , भागवतकार एक नंबर का गपोड़ी था . वीर्य से सोनेचांदी की खानें नहीं बन सकतीं . क्या पौराणिक लोग सिद्ध कर सकते हैं कि शिव के वीर्य से सोनेचांदी की खानें कैसे बन गईं ?



घड़े से अगस्त्य और वसिष्ठ का जन्म 


अगस्त और वसिष्ठ ऋषिओ का उल्लेख वेदों सहित अनेक ग्रंथो में आता है भागवत पुराण के अनुसार उनका जन्म घड़े से हुआ था 


अगस्त्यश्च वसिष्ठश्च मित्रावरुणयोर्ऋषी . रेतः सिषिचतुः कुम्भे उर्वश्याः सन्निधो द्रुतम् . 


भागवत पुराण 6-18-5,6 


अर्थात : उर्वशी को देख कर मित्र और वरुण दोनों का वीर्य स्खलित हो गया . उसे उन दोनों ने घड़े में रख दिया . उसी से मुनिवर अगस्त्य और वसिष्ठ का जन्म हुआ .




भागवत की बात विज्ञान एवं संतानशास्त्र के नियमों के विरुद्ध होने से बुद्धिमानों में मान्य नहीं होगी .



गर्भ के 49 टुकड़े 


भागवत पुराण में आता है कि दिती प्रजापति के वीर्य से 100 साल तक गर्भवती रह चुकी थी 


तब इन्द्र ने योग माया से उसके गर्भ में घुस कर उसके गर्भ कर 100 टुकड़े कर दिए 


तरिक्त दितेः प्रविष्ट उदरं योगेशो योगमायया . ( 6/18/61 ) रुदंतं सप्तधैकैकं मा रोदीरिति तान् पुनः . ( 6/18/62 ) चकर्त सप्तधा गर्भ वज्रेण कनकप्रभम् , ते तमूचुः पाट्यमानाः सर्वे प्रांजलयो नृप , नो जिघांससि किमिंद्र भ्रातरो मरुतस्तव . ( 6/18/63 ) न ममार दितेर्गर्भः श्रीनिवासानुकम्पया ... ( 6/18/65 )

 -श्रीमद्भागवत महापुराण


अर्थात : योगी इंद्र योगमाया से दिति के गर्भ में घुस गया . वहां उस ने सोने के समान चमकते हुए गर्भ के वज्र से सात टुकड़े कर दिए . उन रोते हुए टुकड़ों से इंद्र ने ' मत रोओ ' कहते हुए प्रत्येक के सातसात टुकड़े कर दिए . जब इंद्र उन के ( 49 के ) भी टुकड़े करने लगा तो वे हाथ जोड़ कर बोले , “ इंद्र , हमें क्यों मारना चाहते हो ? हम तो तुम्हारे भाई हैं . " भगवान की कृपा से दिति का वह गर्भ मरा नहीं .




वाह री दिति की नींद ! इंद्र अपना वज्र ले कर गर्भाशय में घुस गया , फिर भी उस की नींद नहीं खुली . गर्भ के सात टुकड़े किए गए . वे सातों रोए तो उन के 49 टुकड़े कर दिए . उन सब ने हाथ जोड़ कर इंद्र से निवेदन किया , पर दिति सोती ही रही . क्या सौ वर्षों तक गर्भ को सुरक्षित रखना किसी भी नारी के वश की बात है ?


इस  तरह से हम देखते है की बामनों द्वारा लिखे गए ग्रंथो में किसी तरह का कोई ज्ञान विज्ञान तत्वज्ञान ना होकर केवल अंध विश्वास और पाखंड भरा हुआ है 

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