रामराज्य का भांडा फोड
रामराज्य शब्द का उपयोग एक आदर्श समाज व्यवस्था के रूप में किया जाता है
ऎसी व्यवस्था जिसमें समाज के सभी लोग सुखी हो सम्पन्न हो।
पुरातनवादी ही नही बल्की खुदको सेक्युलर कहने वाले भी इस शब्द का उपयोग ज़रूर करते है आदर्श समाज व्यवस्था के रूप में।
रामराज्य को , राम के समय की शासन और समाज व्यवस्था को , एक आदर्श में प्रस्तुत किया जाता है तो यह देखना जरूरी हो जाता है कि रामराज्य की विशेषताएं क्या थीं . क्या सचमुच रामराज्य एक आदर्श शासन प्रणाली थी जिस में लोग सुखी , समृद्ध और कर्तव्यनिष्ठ थे और जिस में शासक या राजा जनता के प्रति अपने दायित्वों को कुशलता से निभाता था ?
उत्तर कांड में राम का राजा के रूप में उल्लेख आया है
इसलिए रामराज्य कैसा था यह भी उत्तर कांड के आधार पर ही जाना जा सकता है।
एक और बात ये भी है कि रामराज्य संकल्पना का इतना फेमस होना भी इस बात का प्रमाण है कि लोगो ने कभी उत्तर कांड को प्रक्षिप्त नहीं माना है
राम की दिनचर्या
उन की दिनचर्या ऐसी होती थी कि उस में राजकरण के लिए ध्यान देने का समय निकाल पाना संभव नहीं दिखता। राम की दिनचर्या गायकों और वादकों द्वारा गीतवाद्य सुनते उन की दिनचर्या ही ऐसी थी कि उस में राजकाज पर ध्यान देने का समय निकाल हुए आरंभ होती थी .
तस्यां रजन्यां व्युष्टायां प्रातपतिबोधका :. वन्दिनः समुपातिष्ठन् सौम्या नृपति वेश्मनि .. ते रक्तकण्ठिनः सर्वे किन्नरा इव शिक्षिताः . तुष्टवुपतिं वीरं यथावत् संप्रहर्षिणः
(उत्तर कांड 37/2,3)
अर्थात : वह रात बीत जाने पर जब सवेरा हुआ तो प्रातःकाल राम को जगाने के लिए सौम्य बंदीजन राजमहल में उपस्थित हुए . उन के कंठ बड़े मधुर थे , संगीत की कला में किन्नरों के समान पारंगत उन वंदना करने वालों ने विधिवत वीर नरेश का स्तवन आरंभ किया .
सूताश्च संस्तवैर्दिव्यैर्बोधयन्ति स्म राघवम् . स्तुतिभिः स्तूयमानाभिः प्रत्यबुध्यत राघवः ..
(उत्तर कांड 37-10)
अर्थात : सूत भी दिव्य स्तुतियों द्वारा रघुनाथ को जगाते रहे . इस प्रकार सुनाई जाती हुई स्तुतियों के द्वारा राम जागे . उठने के बाद स्नानादि से निवृत्त होने के लिए राम को हजारों सेवकों की जरूरत पड़ती थी .
जिस राजा को स्नान के लिए हजारों सेवको की जरूरत पड़ती हो क्या वो एक आदर्श राजा हो सकता है क्या उसका शासन आदर्श शासन हो सकता है ?
कर्मकांड और ब्राह्मणों की पूजा
रामायण में राम की दिनचर्या का जो विवरण मिलता है , उस के अनुसार राम को आमोदप्रमोद , धार्मिक कर्मकांड और ब्राह्मणों की सेवाशुश्रूषा से ही फुरसत नहीं मिलती थी .
कृतोदकः शुचिर्भूत्वा काले हुतहुताशनः . देवागारं जगामाशुपुण्यमिक्ष्वाकुसेवितम् .. तत्र देवान् पितॄन् विप्रानर्चयित्वा यथाविधिः . बाह्य कक्ष्यान्तरं रामो निर्जगाम जनैर्वृतः ..
(उत्तर कांड 37/13,14)
अर्थात : स्नानादि प्रातः कृत्यों से निवृत्त हो कर राम ने हवन किया . फिर पूर्वजों द्वारा सेवित देवालय में गए . वहां देवता , पितर और ब्राह्मणों की पूजा कर के राम सज्जनों के साथ राजसभा में गए .
राम को सुबह सुबह ही कर्मकांड और ब्राह्मणों की पूजा करने वाले राजा के रूप मी दर्शाना इस बात का प्रमाण है कि बामानवादी गुलाम राजा कैसा होना चाहिए ये दर्शाने के लिए रामायण लिखी गई थी।
मनुस्मृति अध्याय 7, श्लोक 37,38, में भी यही लिखा है कि राजा ब्राह्मणों की पूजा और सेवा करें।
और यही काम राम भी करता था।
कुल मिलाकर राम को मनुवादी राजा कहने में गलत नहीं है।
वनवास जाते समय ब्राह्मणों को दान देना
अयोध्या कांड में उल्लेख है कि राम ने वनवास जाते समय ब्राह्मणों को हजारों गाय, मणिक, सुवर्ण मुद्रा, वस्त्र आदि दान किए थे।
यह धन है , इसे मैं तुम्हारे साथ रहकर तपस्वी ब्राह्मणोंको बाँटना चाहता हूँ ॥ ३५ ।। ' गुरुजनोंके प्रति सुदृढ़ भक्तिभावसे युक्त जो श्रेष्ठ ब्राह्मण यहाँ मेरे पास रहते हैं , उनको तथा समस्त आश्रितजनोंको भी मुझे अपना यह धन बाँटना है ।। ३६ ।। ' वसिष्ठजीके पुत्र जो ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ आर्य सुयज्ञ तुम शीघ्र यहाँ इन सबका तथा और जो ब्राह्मण शेष रह गये हों , उनका भी सत्कार करके वनको जाऊँगा ॥ ३७ ।
(अयोध्या कांड 31/ श्लोक 35,36,37)
अगले अध्याय में राम लक्ष्मण को दान देने के लिए कहता है,
सुमित्रानन्दन ! अगस्त्य और विश्वामित्र दोनों उत्तम ब्राह्मणोंको बुलाकर रत्नोंद्वारा उनकी पूजा करो । महाबाहु रघुनन्दन ! जैसे मेघ जलकी वर्षाद्वारा खेतीको तृप्त करता है , उसी प्रकार तुम उन्हें सहस्रों गौओं , सवर्णमद्राओं . रजतद्रव्यों और बहमल्य मणियोंद्वारा संतष्ट करो ॥ १३-१४ ॥ ' लक्ष्मण ! यजर्वेदीय तैत्तिरीय शाखाका अध्ययन करनेवाले ब्राह्मणोंके जो आचार्य और सम्पर्ण वेदोंके विद्वान हैं . साथ ही जिनमें दानप्राप्तिकी योग्यता है तथा जो माता कौसल्याके प्रति भक्तिभाव रखकर प्रतिदिन उनके पास आकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं , उनको सवारी , दास - दासी , रेशमी वस्त्र और जितने धनसे वे ब्राह्मणदेवता संतुष्ट हों , उतना धन खजानेसे दिलवाओ ॥ १५-१६ ॥
आगे राम द्वारा गर्ग गोत्री ब्राह्मणों को हजारों गाय दान करने का उल्लेख है
श्रीरामने विनोदपूर्वक कहा- ' ब्रह्मन् ! मेरे पास असंख्य गौएँ हैं , इनमें से एक सहस्रका भी मैंने अभीतक किसीको दान नहीं किया है । आप अपना डंडा जितनी दर फेंरुक सकेंगे वहाँतककी सारी गौएँ आपको मिल जायँगी ' ॥ ३६ ॥
मेरे पास जो - जो धन हैं . वह सब ब्राह्मणोंके लिये ही है । आप - जैसे ब्राह्मणोंको शास्त्रीय विधिके अनुसार दान देनेसे मेरे द्वारा उपार्जित किया हुआ धन मेरे यशकी वृद्धि करनेवाला होगा ' ।। ४२ ।।
तो इस तरह से मनुवादी मानसिक गुलाम बामनवादी राम अपनी सारी सम्पत्ति ब्राह्मणों को दान करके वनवास चला जाता है
राम का मद्दपान
उत्तरकांड के 42 वें सर्ग में उल्लेख आता है कि अशोक वाटिका में राम ने सीता को मद्य पिलाया . उन के सेवक भोजन के लिए अनेक प्रकार के मांस और मीठे फल ले आए और नृत्यगान में पारंगत सुंदर स्त्रियों के साथ विहार किया
बालाश्च रूपवत्यश्च स्त्रियः पानवशानुगाः . उपानृत्यन्त काकुत्स्थं नृत्यगीतविशारदाः .. मनोऽभिरामा रामास्ता रामो रमयतां वरः . रमयामास धर्मात्मा नित्यं परमभूषितः ..
(उत्तर कांड 42/21-22)
अर्थात : उदार स्वभाव वाली परम सुंदरी स्त्रियों ने आ कर मद्य पिया और नाचनेगाने लगी . सब को आनंद देने वाले रामचंद्र ने उन स्त्रियों को सुख दिया .
समझ में नहीं आता के ये रामभक्त लोग राज दरबार में स्त्रियों को नचाने वाले उनके साथ समागम करने वाले
मद्य पीने वाले राजा को आदर्श मानकर 21 वी सदी के लोकतंत्र में कौनसा आदर्श प्रस्तुत करना चाहते है।
शूद्र शंबुक वध
शूद्र शंबूक वध की प्रसिद्ध कथा लगभग सभी मूलनिवासी जानते ही है, यहां हम संक्षिप्त में बता दे कि
ब्राह्मण बालक की मृत्यु हो जाती है बाप उसका शव लेकर राम दरबार में जाता है, और कहता है कि आपके राज्य में कोई शूद्र तपस्या कर रहा है इसलिए मेरे बालक की मृत्यु हो गई है, फिर राम उस शूद्र शांबुक को खोज कर उसकी हत्या कर देता है
शूद्रयोन्यां प्रजातोऽस्मि तप उग्रं समास्थितः देवत्वं प्रार्थये राम सशरीरो महायशः न मिथ्याहं वदे राम देवलोकजिगीषया , शूद्रं मां विद्धि काकुत्स्थ शम्बूकं नाम नामतः .
मैं शूद्र परिवार में जन्मा हूं और यह कठिन तप कर रहा हूं , ताकि इस शरीर के साथ मैं देवलोक में पहुंच सकूँ . हे राम , मैं झूठ नहीं कहता . मुझे शूद्र समझें . मेरा नाम शंबूक है और मैं देवलोक जीतना चाहता हूं . )
राम का जन्म ब्राह्मणों के हितों के लिए
बाल कांड में राम के जन्म का और उसके बाद कथाओं का उल्लेख है
उसके 15 वे सर्ग में है कि देवताओं द्वारा रावण वध की प्रार्थना किए जाने के पर विष्णु ने दशरथ के यहां मनुष्य रूप में जन्म लेकर रावण को मारने तथा महर्षि मुनि ब्राह्मणों और देवताओं का संकट दूर करने का आश्वासन दिया (बालकाण्ड 15)
कुल मिलाकर ब्राह्मणों का संकट दूर करना यह भी राम के जन्म का एक प्रमुख कारण था
और राम ने ब्राह्मणों को बिल्कुल नाराज नहीं किया
उसने समय समय पर ब्राह्मण विरोधी लोगो की हत्या की
इसी बालकांड के 25,26 वे सर्ग में ताड़का वध का उल्लेख है
ताड़का यक्ष समाज की स्त्री थी, बामन अगस्त्य ने उसके पति की हत्या की थी और बेटे को श्राप दिया था।
इसी कारण से ताड़का बामनो को सताने लगी,
विश्वामित्र ने ताड़का के बारे में पूरा वृत्तांत सुनाने के बाद राम ने कहा
ब्राह्मणों के कल्याण धर्म के लिए में अभी ताड़का का वध करता हूं।
और इस तरह से राम ने ताड़का का वध कर दिया। (बालकाण्ड 26)
निष्कर्ष :
तो राम राज्य का राम जिसे सुबह नहाने के लिए हजारों सेवक चाहिए, वो सुबह सुबह ही कर्म कांड और बामनों कि पूजा करता है, मद्द पान करता है, बामनों के कहने पर उनके विरोधियों की हत्या कर देता है, द्विजो की सेवा का कर्म भूलने वाले शूद्रों को मृत्यु दण्ड देता है।
इससे साबित होता हैं कि राम राज्य पूरी तरह से मनुस्मृति पर चलने वाला राज्य था।
21 वी सदी में भी मनुस्मृति पर चलने वाले राम राज्य को आदर्श व्यवस्था बताने का बामनवादी षड़यंत्र ये है कि इन लोगों को लोकतंत्र को हटा कर देश को बामन राष्ट्र बनाना है ऐसा बामन राष्ट्र जिसमें मनुस्मृति के अनुसार चलने वाले तनाशहा का शासन हो।
यही है बामन और उनके समर्थकों का आधुनिक राम राज्य
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