मनुस्मृती मे हगने-मुतने के नियम



जागृत sc st obc मुलनिवासीओं बस इतना हि पता है मनुस्मृति स्त्री शुद्र विरोधी है और उसमे ब्राह्मण वर्ण का महिमामंडन किया गया है. 

लेकिन इसके अलाव भी मनुस्मृति मे बहोत सारे ऐसे विचित्र नियम है जो विज्ञान और तर्क विरोधी है. 

मनुस्मृति मे हगने-मुतने के कुछ नियम बताये गये है 

मनुस्मृति के अनुसार 

विवर या गढे प्राणियोंसे युक्त हो उनमे,चलते-चलते या #खडे_होकर, नदी के तट पर या पहाड कि चोटी पर मलमुत्र न करे.

(मनुस्मृति अध्याय 4, श्लोक 47) 


बाकी सब तो ठिक है लेकिन खडे-खडे मुत्रविसर्जन करने से क्या होने वाला है ?  

पहले धोती के कारण पुरुष भी निचे बैठकर मुत्रविसर्जन करते होंगे 
लेकिन अब तो सबके पास पैंट है और उसे चैन भी होती है. 
इसलिए अब ये विचित्र नियम कालबाह्य हो गया है

आगे मनुस्मृति मे लिखा है 

तिरस्कृत्योच्चरेत्काष्ठलोष्ठपत्रतृणादिना... 
नियम्य प्रयतो वाचं संवीतांगोsवगुंठित....
मुत्रोच्चारसमुत्सर्गं दिवा कुर्यादुदड्मुख....
दक्षिणाभिमुखो रात्रौ संध्यायोश्च तथा दिवा..
छायायामन्धकारे वा रात्रावहनि वा द्विज द्विज....
यथासुखमुखः कुर्यात्प्राणबाधाभयेषु च..
प्रत्यग्निं प्रतिसूर्यं च प्रतिसोमोदकद्विजान्...
प्रतिगां प्रतिवाचं प प्रज्ञा नश्यति मेहत.....

अर्थातः लकडी,मिट्टी,पत्ता,घास आदि से भूमी को ढक कर तथा चुप हो कर,सिर पर कपडा डाल कर (घुंघट सा निकाल कर) मलमुत्र त्याग करे.दिन मे तथा दोनो(प्रातःकाल और सायंकाल कि)  संध्याओं मे उत्तर कि ओर मुंह कर के तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुंह कर के मलमुत्र त्याग करे.द्विज रात मे या दिन मे बादलों की छाया हो जाने पर अथवा कुहरे आदि से अंधेरा हो जाने पर और प्राणबाधा का भय होने पर जिस ओर चाहे मुंह कर के मलमुत्र त्याग कर सकता है. सर्य के सामने,चंद्रमा,जल,ब्राह्मण,गाय और हवा की ओर मुंह कर के मलमुत्र त्याग करने वाले कि बुद्धि नष्ट हो जाती है.

(मनुस्मृति: अध्याय 4,श्लोक 49 ते 52)


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सिर पर कपडा डाल कर मलमुत्र त्याग करने का कौनसा वैज्ञानिक कारण है ? 
सुबह उत्तर कि ओर रात मे दक्षिण कि और मुह करके मलमुत्र त्याग करे 
क्यों? 
क्या पुर्व पश्चिम कि ओर मुह करने से संडास नही होगी ?  
रात मे अंधेरा ज्यादा होने पर द्विज किसी भी ओर मुह करके मलमुत्र त्याग करे. 
ठिक है लेकिन शुद्र क्यों नही. 

चंद्रमा,जल,ब्राह्मण,गाय और हवा की ओर मुंह कर के मलमुत्र त्याग करने वाले कि बुद्धि नष्ट हो जाती है.

ठिक है लेकिन अगर किसी का पेट खराब हो तो सामने चंद्र,जल,गाय,ब्राह्मण है या नही ये देखते देखते हि उसके चड्डी मे संडास हो सकती है. 

और गाय ब्राह्मण के सामने हि संडास के लिए मना क्यों किया है ? 
क्या मनुस्मृति स्त्रीयों के सामने शौच करने कि इजाजत देती है ?  

वैसे अब हर किसी के घर मे टाॅयलेट है इसलिए अब ये विचित्र ग्रंथ पुरी तरह से कालबाह्य हो गया है

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