अतिथीदेवो भव कि सच्चाई
बहोत सारे लोग अतिथीदेवो भव(तैत्तिरिय उपनिषद 1/11) के आधार पर अपने धर्म कि महानता दिखाते है.
उनका कहना है कि हमारी सनातन संस्कृती इतनी महान है कि इसमे अतिथी को देवता माना जाता है.
क्या सच मे इस संस्कृती मे अतिथी को देवता माना जाता है ? या फिर ये अपने धर्म को महान दिखाने के लिए किया गया एक दुष्प्रचार है
जब हम 'अतिथीदेवो भव' के विषय मे गहराई मे जाकर पढते है तब पता चलता है कि इसकी सच्चाई कुछ और हि है
#कठोपनिषद
कठोपनिषद मे एक कथा है नचिकेता नाम का ब्राह्मण यम के घर जाता है.
यम तिन दिन के लिए बाहर गया होता है
तिन दिन के बाद वापस आने पर पत्नी उसे कहती है
ब्राह्मण अतिथी के रुप मे अग्नी देवता घर आती है
(कठोपनिषद 1/1/7)
यम कि पत्नी यम को ब्राह्मण अतिथी कि सेवा न करने से क्या क्या नुकसान हो सकता है ये बताती है.
ब्राह्मण कि महिमा सुन कर यम ने ब्राह्मण अतिथी कि पुजा करना शुरु किया
नचिकेता ब्राह्मण यम कि अनुपस्थिती मे तिन दिन भुखा रहने के कारण यम उसे तिन वर मांगने के लिए कहता है.
(कठोपनिषद 1/1/9)
ग्रंथ मे स्पष्ट कहा गया है कि घर आया अतिथी अगर ब्राह्मण है तो ही वह देवता है और सेवा करने लायक है.
अतिथीदेवो भव (तैत्तिरिय उपनिषद 1/11) भी एक हि वर्ण से संबंधीत है सभी मनुष्य के लिए नही.
अन्य वर्ण के अतिथी के साथ कैसा बर्ताव करे इसकी जानकारी हमे मनुस्मृति से मिलती है.
ब्राह्मण के घर क्षत्रिय वैश्य शुद्र आये तो उन्हें अतिथी नही माना जाता
(मनुस्मृति 3/110)
क्षत्रिय अतिथी घर आने पर पहले ब्राह्मण भोजन कर ले बाद मे क्षत्रिय को भोजन दे
(मनुस्मृति 3/111)
वैश्य शुद्र अतिथी घर आने पर उन्हें नौकरो के साथ भोजन कराना चाहिए
(मनुस्मृति 3/112)
'अतिथीदेवो भव' के नाम पर जिस संस्कृती को महान दिखाया जाता है
वो संस्कृती तो क्षत्रिय वैश्य शुद्र को भी अतिथी नही मानती है.
विदेशी पर्यटक तो बहोत दूर कि बात है.
अंतः यह सिद्ध है कि 'अतिथीदेवो भव' केवल ब्राह्मण वर्ण के लिए है सभी मनुष्य के लिए नही
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