वैदिक धर्म मे शुद्र का स्थान
21 वी सदी के आधुनिक काल मे अमानविय कालबाह्य धर्म कि इज्जत बचाने के लिए संघी मनुवादी दयानंदी कथावाचक बाबा पंडे पुरोहित किस तरह से झुठ बोलते है ये हम सब जानते ही है. इनके अनेक झुठो मे से एक है वर्ण हर किसी को उसके कर्म से मिलता था. कोई भी किसी भी वर्ण मे जा सकता था. कोई वर्ण किसी से उच्च-निच नही था. सबके साथ समानता थी. इसलिए आज हम रामशरण शर्मा कि पुस्तक 'शुद्रो का प्राचिन इतिहास' के आधार पर शुद्रो कि स्थिती पर प्रकाश डालने वाले है. पुस्तक काफी बडी है इसलिए हम कुछ ही मुद्दो को यहा प्रस्तुत करने वाले है रामशरण शर्मा अपनी पुस्तक मे लिखते है शुद्र भुमिहिन मजदूर थे. आपस्तंभ मे कहा गया है कि शुद्र चरण पखार कर अपना गुजर बसर करते थे. शुद्रो के पास कोई भुसंपत्ती नही थी. इसलिए अधिकांश लोगो को दुसरो कि जमिन मे काम करना पडता था. (पृष्ठ 87) धर्मसुत्रो से शुद्रो के रहन सहन कि स्थिती पर कुछ प्रकाश पडता है. गौतम(गौतम धर्मसुत्र का लेखक) ने कहा है कि शुद्र नोकर को चाहिए कि वह उच्च वर्ण के लोगों द्वारा उतार फेके गये जुते छाते वस्त्र और चटाई का उपयो...